समसामयिक दोहन

यह संसार है भव-सागर,
नहीं दुखों का कोई अंत,
ईश्वर को खोजना व्यर्थ ,
पैसा समय लगाना मत ,
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समय संग चलते चलते,
खुद को रहें परखते,
इतिहास को ढोना मत,
रहें पल पल जागते .
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ताका झाकी छोड़ दे,
अपनी सुध लेहि,
निज बोध सधे बिन,
खटपट मिटे नाहि.
……..
तू सोचे तू परम है,
झलक आवे नाय,
तू खुद फंसे फंसाया,
तोहे निकाले कोय,
……..
दिखावा तेरा गजब का,
टोपी करे गुरेज,
आपणो धर्म श्रेष्ठ है,
शेष सब चालबाज.
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जल तो जीवनहै,
नीर क्षीर समान,
गंगा जल निर्मल है,
क्यों बाचे खदान.
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वायु आकाश संग गति .
माटी जल आकृति,
आग संयोजन तोडती,
जाने सो मन प्रकृति.
……..
परचम बढाने वासते,
कर्ज लियो बढाय,
परतंत्रता के रास्ते,
सपने में सुख नाय,
……..
जनता तो अनाडी हुई,
पाखंडी को स्थान,
हुई पांच शेर की डील,
निकल गई जमीन.
……..
आंमी साहमी दुनिया हुई,
राजा बिठाया जुगाड़,
दक्षिणपंथी सब विचार,
वाम के लेगा उखाड़.
……..
तेरा खाना तू सहेज,
के मछली के गोश्त,
कैसे बढाते उत्पादन,
पेंचर लगाने में मस्त.
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नाले की गैस में
पाइप लो जोड,
फिर पकौड़े तले,
मिशाल बेजोड़.
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