"सफलता" ने क्या-क्या छीना
सफलता ने हमसे क्या क्या है छीना,
गांव की गलियां, बचपन की लड़ियां,
कोयल की कू कू, चिड़ियों की ची ची,
मिली है सफलता बहुत कुछ खो के ।।
बचपन में टूटी लड़प्पन की डोरी,
जिसमें थी गुंथी हंसी और ठिठौली,
छूटे थे हाथों से गिल्ली और डंडे,
किताबों ने छीने बचपन के फंडे।।
खोया है रिश्ते, खो दी जमीन को,
मंजिल को पाया खोकर खुदी को,
रहे भागते केवल सपनों की चाह में,
खो गईं वो शामें, छांव थी जो राह में।
सफलता की राह में खोए बहुत कुछ,
क्या पाया, क्या खोया, अब न रहा कुछ।
जो बचा है, वो बस है एक नाम है,
क्या जीवन का असली यही दाम है?
@विहल