सागर हूं मैं
सागर हूं मैं
गौर साहब का सपना हूं ,घरौंदा घर सा अपना हूं मैं,
रानगिर माता का आशीर्वाद हूं, गढ़ पहरा का इतिहास हूं मैं,
अजी हां मध्य प्रदेश की श्वास हूं मैं।
चंद्रा पार्क की शांति हूं, भापेल की क्रांति हूं मैं,
आपचन्द की गुफाओं का इतिहास हूं, एरन जैसा कुछ खास हूं,मैं
अजी हां मध्य प्रदेश की श्वास हूं, मैं।
शिव साहब की कविता हूं , बुंदेली संस्कृति की सविता हूं, मैं
राधा वल्लभ त्रिपाठी का ज्ञान हूं, आशुतोष राणा का अभिमान हूं मैं,
अजी हां मध्य प्रदेश का शान हूं, मैं।
नंदू लाल की बगिया भी मैं, उदय प्रकाश की वसुधा हूं,
मैं मुकेश का मुम्बई भी,नवीन सागर की नगरी हूं,मैं
मैं हूं पद्माकर की गंगा –लहरी , गोविन्द की तरंग हूं, मै ,
अजी हां बुंदेलखंड के संग हूं मैं।
कांतिकुमार की मुक्तिबोध हूं,राजकुमार की रचनाएं भी ,
मैं हूं भगीरथ की भावना , दादा भवानी का वाद विवाद संवाद भी,
मैं शिव शक्ति सा पावन हूं, वृंदावन सा मनभावन भी, मैं
मैं ओशो का ज्ञान हूं , गौर साहब का दान हूं ,मैं
अजी हां मध्य प्रदेश की शान हूं, मैं ।
राहतगढ़ की निर्मलता हूं, चकरा घाट में काशी हूं, मैं
मैं बंजारा का बलिदान हूं, बुंदेलखंड की जान हूं, मैं
अजी हां मध्य प्रदेश की शान हूं ,मैं ।
अटल पार्क का प्रेम हूं, लाखा बंजारा का डैम हूं मैं,
मैं हूं भूतेश्वर की शक्ति ,नागेश्वर जी की भक्ति भी, मैं
मैं नीलकंठ सा न्यारा हूं, मंगल गिरि सा प्यारा हूं मैं,
अजी हां बुंदेलखंड का दुलारा हूं, मैं ।।
कवि— अमन कुमार