“दिन वसूल है, वसूल है, वसूल है..!” ग़ज़ल

“दिन वसूल है, वसूल है, वसूल है..!”
हसीं बहुत हैं चमन मेँ,ये मानता हूँ मगर,
सिवाय उसके हर गुलाब भी, बबूल है, बबूल है, बबूल है।।
मुस्कुराता है सब से मिलके,हूँ वाक़िफ़ फिर भी,
यूँ तग़ाफ़ुल भी महज़बीं का पर,क़ुबूल है, क़ुबूल है, क़ुबूल है ।।
नाम उसका हैं पूछते,सभी अहबाब मुझे,
इश्क़ करने का भी यारा,अलग उसूल है, उसूल है, उसूल है।।
वो ही मँज़िल, वही मौला, मिरा माशूक़ वही,
वो ही बस मेरा चरागर,वही रसूल है, रसूल है, रसूल है।।
वही है याद मेँ, ख़याल मेँ,दिल मेँ हरदम,
सिवाय उसके कोई बात भी,फ़िज़ूल है, फ़िज़ूल है, फ़िज़ूल है।।
अदा-ए-नाज़ का क़ायल हूँ,क्या करूँ “आशा”,
ख़्वाब मेँ भी, जो वो दिख जाए,दिन वसूल है, वसूल है, वसूल है..!
तग़ाफ़ुल # नज़रन्दाज़ करना, to neglect
अहबाब # मित्रगण, friends
चरागर # हक़ीम, doctor
रसूल # ईश्वर का दूत, पैगंबर आदि, divine messenger
अदा-ए-नाज़ # (प्रेयसी के) छेडख़ानी भरे अन्दाज़, coquettish manners (of the beloved)