कुंडलिया छंद : एक विवेचन ( समीक्षा )

कुण्डलिया छंद विस्तार प्राकृत से खड़ीबोली तक
पुस्तक – कुण्डलिया छंद एक विवेचन
लेखक- डॉ. बिपिन पाण्डेय
प्रकाशक – श्वेतवर्णा नई दिल्ली
मूल्य – रु. 299/- मात्र।
‘कुण्डलिया छंद एक विवेचन’ डॉ. बिपिन पाण्डेय द्वारा सम्पादित पुस्तक, कुण्डलिया छंदों का संग्रह मात्र नहीं है। इसमें कुण्डलिया छंदों का प्राकृत से लेकर अब तक का इतिहास है। समयानुसार छंद में आये परिवर्तन की कहानी ‘कुण्डलिया छंद की विकास यात्रा’ शीर्षक से लिए आलेख में देखने मिलती है। उन्होंने ‘प्राकृत पैंगलम्’ से लेकर प्राकृत में रचित छंदों को उदाहरणस्वरुप प्रस्तुत किया है तथा उस काल के ज्ञात छ्न्द्कारों के नाम भी उद्धृत किये हैं।
डॉ. बिपिन पाण्डेय का अथक परिश्रम ही है कि उन्होंने कुण्डलिया में हुए प्रयोगों को भी कुण्डलिया छंद की विकास यात्रा में अंतर्गत की जगह दी है। इसमें उन्होंने गुरु लघु से प्रारम्भ और समाप्त होने वाले बसंत राम दीक्षित की रचना के साथ-साथ अमरनाथ जी की नाग कुण्डलिया और डेढ़ रोला वाले शितिकंठ को भी जगह देकर कुण्डलिया में हो रहे प्रयोगों से पाठक को परिचित कराया है। कुण्डलिया छंद के किसी भी विद्यार्थी के लिए यह जानकारी अद्भुत भी है और रोचक भी।
डॉ. बिपिन पाण्डेय ने कुण्डलिया के आधार स्तम्भ स्वरूप ध्रुवदास, गिरधर एवं रायप्रसाद जी के विषय में विस्तृत जानकारी प्रारम्भिक स्तबक में प्रस्तुत की है। कुल बीस अध्याय में विभाजित इस पुस्तक के शेष भाग में नारी चेतना की अभिव्यक्ति, बिनु पानी सब सून, बेटी है सौभाग्य जैसे विभिन्न विषयों पर आधारित देश के लगभग सभी रचनाकारों के कुण्डलिया छंदों की समीक्षात्मक उपस्थिति इस पुस्तक में रखी है। कुल 200 पृष्ठों की इस पुस्तक को 20 अध्यायों से सुसज्जित किया है। कुण्डलिया की ही तरह हास्य रचना के श्रेष्ठ कवि काका हाथरसी उर्फ़ प्रभुलाल गर्ग की हास्य रचनाओं को, जो कुण्डलिया के बहुत नजदीक प्रतीत होती हैं, हास्य-व्यंग्य के अध्याय में रखना नहीं भूले हैं।
विशिष्ट कुण्डलिया संग्रह में उन्होंने विशेष रूप से बाबा बैद्यनाथ पर आलेख इस पुस्तक में प्रकाशित किया है। जिनके द्वारा 1816 कुण्डलिया छंदों का संग्रह ‘बाबा बैद्यनाथ झा रचनावली, भाग-1 प्रकाशित करवाया गया है। जो एक कीर्तिमान है। इसके अतिरिक्त डॉ. बिपिन पाण्डेय ने ऋता शेखर मधु के द्वारा नव रस पर रचे कुण्डलिया छंद संग्रह इन्द्रधनुष (नवरस कुण्डलिया) के लिए भी पृथक आलेख प्रस्तुत किये हैं। अन्त में अब तक प्रकाशित कुण्डलिया के साझा संकलनों की जानकारी, उनमें सम्मिलित कुण्डलियाकारों के नाम सहित दी है।
कुल मिलाकर यह किसी कुण्डलिया छंद के शोध विद्यार्थी के लिए एक ही स्थान पर सम्पूर्ण जानकारी उपलब्ध कराने का दुष्कर कार्य डॉ. बिपिन पाण्डेय द्वारा किया गया है।
मैं डॉ. बिपिन पाण्डेय को उनके इस महती कार्य के लिए हृदय से बधाई देता हूँ और सभी कुण्डलिया छंद के रचनाकारों और छंद में रूचि रखने वाले श्रेष्ठजनों से निवेदन करता हूँ कि वे एक बार अवश्य ‘कुण्डलिया छंद एक विवेचन’ पुस्तक को पढ़ें।
अशोक रक्ताले ‘फणीन्द्र’, उज्जैन.