कभी सोचा है, कैसा लगता होगा उस बच्चों को जिसने अपने ही घर मे

कभी सोचा है, कैसा लगता होगा उस बच्चों को जिसने अपने ही घर में, अपनों के ही बीच में, खुद को हमेशा, अपने हर तकलीफ में अकेला पाया है, जिसने अपनी तकलीफ वहाँ भी नहीं बताई जिस घर के वो औलाद है, जहाँ उसके अपने रहते है, वह अपनी छोटी सी Problem भी अपने घर वालों को बताने से डरता है, क्योंकि वह इसलिए डरता है कि कहीं उसको गलत ना समझ लिया जाए, तनिक विचार कर देखिये वह बच्चा रहता कैसे होगा जीता कैसे होगा..?