अंतर्मन के हैवान

अपने अंदर के हैवानों को,
खुद ही मार गिराना है,
तीर ,तलवार,बंदूक की गोली से,
नहीं निशाना लगाना है।
बैठा हुआ जो मन के भीतर,
छुपा हुआ है जहर बनकर,
उसको जड़ से मिटाना है,
खुद ही खुद को समझाना है।
क्या है ? जो घोल दिया है,
प्रेम को नफरत में तौल दिया है,
ईर्ष्या में मुख मोड़ दिया है,
इन अंतर्मन को हराना है।
दुख दर्द तुम्हारा औरों सा है,
रिश्ता फूल और भौरों सा है,
गुनगुन करके अपनाना है,
खुशबू फैला कर महकाना है।
एक बुराई घातक बन जाती,
एक अच्छाई सार्थक कहलाती,
अंतर्मन से उपजते है सब,
अंदर से शिकंजा कसते है।
चाहे जितना तुम ज्ञान पाओ,
अज्ञानता में खुद को न उलझाओ,
बैरी कोई नहीं जग में तुम्हारा,
तुमने हृदय में प्रेम को है बसाया।
रचनाकार
बुद्ध प्रकाश
मौदहा हमीरपुर।