ख़्वाब ….
ख़्वाब ….
चोट लगते ही
छैनी की
शिला से निकली
आह
जान होती है
पत्थर में भी
अहसास हुआ
ये आज
छीलता रहा
पत्थर को
निकालना था एक ख़्वाब
बुत की शक्ल में
उसके गर्भ से
रो दी शिला
जब
ख़्वाब
बुत में
धड़कने लगा
क्या हुआ
जो रिस रहा था खून
बुतफरोश के
हाथ से
सुशील सरना