मानवता का अंत

चारों तरफ नकली का बाजार गर्म है ,
कुछ समझ ना पाऊं कितने नकली ,
कितने असली हम हैं ?
बाजार में नकली की भरमार है ,
छुपी असलियत की दरकार है ,
अब तो आदमी भी नकली बन रहे हैं ,
जिसे देखो नकली का मुखौटा पहन रहे हैं ,
नकली अधिकारी , नकली डॉक्टर , नकली व्यापारी ,
नकली पुलिस , नकली कोर्ट , नकली दंडाधिकारी ,
अब तक तो समझते थे कि बुद्धि भ्रष्ट
हो सकती है ,
पर अब तो वह समय है जब बुद्धि भी
नकली हो सकती है ,
आदमी की सोच आसमान से उतरकर
धरातल पर आ गई है ,
जो उसकी सोच को अकर्मण्य बनाकर
नकली बुद्धिमानी का गुलाम बना रही है ,
वह दिन दूर नहीं जब मानव
यंत्रवत बन जाएगा ,
नकली सोच का गुलाम बनकर
धरती पर हाहाकार मचाएगा ,
तब संवेदनहीन मनुष्य के चंगुल में फंसी
मानवता सिसकती रह जाएगी ,
कालांतर में मनुष्य के स्वार्थ की बलिवेदी पर
कुर्बान कर दी जाएगी।