★नारी★

घर की अनुपम शान निराली,
सप्त सुरों की तू रखवाली।
सृष्टि को अभिमान है तुझसे,
रौली कुमकुम मांग संवारी।।
पीर जगत का तू सहती है,
फिर भी मौन ! कहां कहती है।
गंगा सा पावन है आंचल,
जीवन प्राण सी तू बहती है।।
देव भी तुझसे जाते हैं हार,
सचमुच धरती का आधार।
उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम,
सभी जगह तेरा विस्तार ।।
कवि – गजानंद डिगोनिया ‘जिज्ञासु’