वसंत संदेश

वसंत संदेश
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माया का विस्तार अनंग
अनुषंगी वसंत है,
कामदेव सेनापति है इसके
वासना दुष्यंत है..
मंद मंद मुस्कान लिए
वनतोषिणी के लावण्य रुप,
शकुन्तला के मधुर अधर
पलाश पुष्प पर्यंक है..
खुले केश कुंतल लट कपाल
द्विनयन मृगनयनी सम प्रेमजाल,
तरुलता पवन संग करे तरुणी स्पर्श
मनुज मनसिज अत्यंत है..
वनफूलों से गुंथित जूड़ा शीश
श्रीपुष्प कर्णकुंडल जड़ित,
युगल उरज उतंग यौवन अति,
यति मति मन मोहपाश आद्यंत है..
कामदेव के मन्मथ वाण से
दहक उठा है जो वन उपवन,
नव पल्लव मंजर आम्र देख
मधुप मादक मनहर वसंत है..
हे शकुन्तले ! करो मन उद्वेलित नहीं
चिरयौवन असंभव यहां ,
भृकुटि तान ऋषि दुर्वासा हैं खड़े
विस्मृति श्राप है उद्यत,पथिक तू परतंत्र है..
माया का विस्तार अनंग
अनुषंगी वसंत है…
मौलिक और स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
©® मनोज कर्ण
कटिहार (बिहार)
तिथि –०६ /०२/२०२५
फाल्गुन ,शुक्ल पक्ष ,सप्तमी तिथि,वृहस्पतिवार
विक्रम संवत २०८१
मोबाइल न. – 8757227201
ईमेल पता – mk65ktr@gmail.com