इश्क- ए -नाज़ उठाऊं तो,

इश्क- ए -नाज़ उठाऊं तो,
ये महफ़िल रुबरु न हो।
देखकर भीड़ कयामत,
बे तकल्लुफ आरज़ू न हो।
रुस्वा करुं जो रानाइयों को,
आरज़ू में रहगुज़र की।
यादों में हमसफर की,
ये लम्हात, पल बसर न हों।
श्याम सांवरा….
इश्क- ए -नाज़ उठाऊं तो,
ये महफ़िल रुबरु न हो।
देखकर भीड़ कयामत,
बे तकल्लुफ आरज़ू न हो।
रुस्वा करुं जो रानाइयों को,
आरज़ू में रहगुज़र की।
यादों में हमसफर की,
ये लम्हात, पल बसर न हों।
श्याम सांवरा….