मैं जी.आज़ाद हूँ

उड़ने की कोशिश में,
कई बार गिरते- उठते,
इन नन्हे पक्षियों से कहना चाहता हूँ मैं,
नहीं चाहिए मुझको तुमसे कुछ भी,
क्योंकि मैं पहले ही ले चुका हूँ तुमसे उधार,
विश्वास- हिम्मत, मेहनत और उमंग की शिक्षा,
जो जीवन की प्रगति और जीवन्तता का प्रतीक है
वरना मुझको तो बांधना चाहती है,
अपनी गंध से ये विषम हवायें,
क्योंकि मुझको पसंद नहीं है,
किसी एक स्थान पर ठहरकर,
घण्टों तक विश्राम करना,
इसलिए सोचता हूँ और लिखता हूँ मैं,
जी.आज़ाद हिंदुस्तान का जी.आज़ाद नागरिक,
मैं जी.आज़ाद हूँ ।
वरना कभी किसी ने चाहा था,
मुझको अपनी प्रीत की डोर से बांधना,
की थी कोशिश मुझको कैद करने की,
देकर दुहायें समाज और मोहब्बत की,
लेकिन बांध नहीं सका मुझको कोई,
खरीद नहीं सका मुझको कोई,
क्योंकि मैं लालची जो नहीं था,
मुझको किसी से मोह जो नहीं था।
क्योंकि मैं जी.आज़ाद हिंदुस्तान का,
जी.आज़ाद नागरिक जी.आज़ाद हूँ।
तब से, जब मैं समझने लगा भाषा को,
अपने देश और मिट्टी की पहचान को।
अंतर गुलामी और आजादी का,
और फर्क अच्छाई और बुराई में।
और देखता हूँ जब मैं,
चमन के मुस्कराते इन फूलों को,
तब हो जाता है मेरा मन भी भाव-विभोर,
हाथ जोड़कर मैं करता हूँ ईश्वर से प्रार्थना,
ऐसी मुस्कान सबके लबों पर हमेशा रहे।
नभ में चमकते सितारों को देखकर,
चमक उठती है मेरी आँखों में,
आशा की एक किरण,
और इस हरियाली को देखकर,
हरा हो जाता है मेरा दिल,
तब छुपाने से नहीं छुपती,
मेरी हंसी और खुशी।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)