कुम्भ स्नान -भोजपुरी श्रंखला – भाग – २ – वीअईपिया नहान

रतिये सामान सब
गाड़िये धराइल ,
जोहते- जोहत विहान
जल्दिये भईल ।
चुपके से गड़िया
निकलल मोहल्ले से ,
आते सड़किया पे
चलल सन -सन से।
रस्ते भर उषा
सोहर गीत गावे ,
गुड्डू के अम्मा भी
गीत देवी सुनावे।
गावत बजावत सब
जाते रहल ,
उषा के निगाह अचानक
पजरवे पड़ल।
एक बड़की गाड़ी में
दीपकवा देखायल ,
नजर जब मिलल त
ऊ अंखिया चुरायल।
बहुत मामी -मामी
दीपकवा ममियात रहे ,
चुपके से मेहरी संग
संगम भागल ऊ जात रहे।
अरे देखा जीजी
सास -ससुरो के ले ले हौ ,
एकरे वदे हम
लड़ल रहिली ओनहन से।
रचिको ना सोचलेस
की मामियो के ले लेई ,
ई मुंहझौसा के
देखा का हम कही।
चला छोड़ा कहियों
दिन हमरो हो आई ,
तब तोहे हमउ
सुना कस बताइब।
यही सोचत देखत सब
नियरे पहुँचली,
वइजेह से बीस मील
पैदल सब चललिन।
छरहर उषा के
फरक कउनो नाही ,
गुड्डू के अम्मा के
चढ़ल आँखीं छाई।
कतहूँ न भइया उनके
कतहूँ न साथी ,
नन्दोई ओनकर भी
कतौ ना लखाईन।
गुड्डो के अम्मा ज
उषा से कहलिन ,
बलवऊतू जीजा के
अब बस हमरे नहिनी।
वीअईपिया नहान
हम सबके करियतन ,
कराके भोजन पानी
हम सबके पठइतन।
कइले है फोन सुना
उनके हो दीदी
पर भीड़ इतना कि
कैसे ओनके खोजी।
चला धीरे – धीरे
ऊ हमें खोज लिहन
पुलुसिआ जीजा भी
हमें जोहत होइअन। ।,,,,,,,,,,क्रमशः