सूर घनाक्षरी
सूर घनाक्षरी
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पदांत -112,212
सृजन शब्द शीत ऋतु पर आधारित
लगा दिसंबर माह,
निकले ठंड से आह,
रजाई की बस चाह,
ओस कण झरे।
कपड़े निकले ऊनी,
गलियां रहती सूनी,
उठती साँसों में धूनी,
धुंध राज करे।
बर्फ की चादर जमी,
जगह -जगह नमी,
रहती धूप की कमी,
पशु पक्षी डरे।
थर-थर कांपे गात,
होती लंबी लंबी रात,
बस चाय की हो बात,
प्याले गर्म भरे।
मिलती दीन को पीर,
फ़टे हुए सब चीर,
बहता नैन से नीर,
वो है ठंड मरे।
सीमा शर्मा ‘अंशु’