दोहा पंचक. . . . संसार
दोहा पंचक. . . . संसार
किसको अपना हम कहें, किसको मानें गैर ।
अपनेपन के भेस में, लोग निकालें बैर ।।
आडम्बर है हर तरफ, खंडित है विश्वास ।
जग लोभी यह अर्थ का, देता है संत्रास ।।
चुप -चुप रहते वो सदा, जिनके मन में खोट ।
अक्सर देता खून ही, दिल को पैनी चोट ।।
रिश्तों में अब आम है, अर्थ रार तकरार ।
बन्द किताबों में हुआ, अब आपस का प्यार ।।
मुँह बोली संवेदना, मुँह बोला व्यवहार ।
वक्त पड़े मुँह फेरता, मुँह बोला संसार ।।
सुशील सरना / 15225