बाबा गंगेश्वर नाथ मंदिर (धराधाम परिसर) में स्थापित त्रिशूल – आस्था और शक्ति का प्रतीक

बाबा गंगेश्वर नाथ मंदिर (धराधाम परिसर) में स्थापित त्रिशूल – आस्था और शक्ति का प्रतीक
गोरखपुर का ऐतिहासिक धर्मस्थल बना आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र
गोरखपुर के भस्मा गाँव में स्थित बाबा गंगेश्वर नाथ मंदिर (धराधाम अंतर्राष्ट्रीय परिसर), जो भस्मेश्वर महादेव और माँ दुर्गा मंदिर के लिए प्रसिद्ध है, एक ऐतिहासिक और धार्मिक धरोहर के रूप में स्थापित हो चुका है। प्राचीन काल से प्रवाहित अनोमा नदी के निकट स्थित यह मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र रहा है। इसी पावन भूमि पर वर्षों पूर्व सौहार्द शिरोमणि संत डॉ. सौरभ ने अपनी धर्मपत्नी डॉ. रागिनी पाण्डेय (मिसेज इंडिया) के साथ भव्य त्रिशूल की स्थापना कर वैदिक विधि-विधान से पूजन एवं अभिषेक किया था। आज यह त्रिशूल श्रद्धालुओं के लिए गहरी आस्था और शक्ति का केंद्र बन चुका है।
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त्रिशूल की स्थापना का आध्यात्मिक और दार्शनिक महत्व
त्रिशूल केवल एक शस्त्र नहीं, बल्कि शिव तत्व और सृष्टि संचालन का प्रतीक है। इसकी स्थापना के समय संत डॉ. सौरभ ने त्रिशूल के तीन सिरों के गूढ़ अर्थ को समझाते हुए कहा था कि—
1. सत्व (शुद्धता एवं ज्ञान)
2. रज (क्रियाशीलता एवं ऊर्जा)
3. तम (विश्राम एवं विनाश)
ये तीनों गुण (त्रिगुण) सृष्टि के संतुलन के लिए आवश्यक हैं। शिव ने इन्हीं त्रिगुणों को संतुलित करने हेतु त्रिशूल को अपने हाथों में धारण किया।
त्रिशूल – त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) का प्रतीक
संत डॉ. सौरभ ने आगे बताया कि त्रिशूल केवल त्रिगुणों का ही नहीं, बल्कि त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) का भी सूचक है।
ब्रह्मा – सृष्टि की रचना
विष्णु – सृष्टि का पालन
महेश (शिव) – सृष्टि का संहार
इन तीन शक्तियों के बिना ब्रह्मांड का संचालन संभव नहीं है। त्रिशूल इन तीनों की एकता और संतुलन का प्रतीक है।
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धराधाम में त्रिशूल स्थापना का विशेष महत्व
धराधाम एक अंतरधार्मिक सौहार्द और वैदिक संस्कृति को समर्पित केंद्र है। यहाँ स्थापित बाबा गंगेश्वर नाथ महादेव मंदिर हिंदू आस्था का एक पावन स्थल है, जो श्रद्धालुओं के लिए विशेष महत्व रखता है।
त्रिशूल स्थापना के लाभ और आध्यात्मिक ऊर्जा
1. नकारात्मक ऊर्जा का नाश – त्रिशूल के स्पंदन से मंदिर में आध्यात्मिक ऊर्जा बढ़ती है और सभी प्रकार की नकारात्मक शक्तियाँ निष्प्रभावी हो जाती हैं।
2. भक्तों की मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं – मंदिर में आने वाले भक्तों को त्रिशूल के दर्शन और पूजन से विशेष आशीर्वाद मिलता है।
3. शिव कृपा की प्राप्ति – त्रिशूल भगवान शिव का शस्त्र होने के कारण, इसकी स्थापना से शिव कृपा सदैव बनी रहती है।
वर्षों पूर्व हुई इस त्रिशूल की स्थापना अब श्रद्धालुओं के लिए आस्था और शक्ति का केंद्र बन चुकी है। प्रतिदिन सैकड़ों भक्त यहाँ आकर त्रिशूल के दर्शन करते हैं और अपने कष्टों से मुक्ति पाने के लिए प्रार्थना करते हैं।
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वैदिक विधि-विधान से संपन्न हुआ पूजन और अनुष्ठान
इस पावन अवसर पर मंदिर परिसर में शास्त्रोक्त विधि से विशेष पूजन और हवन का आयोजन किया गया। मंत्रोच्चारण और वैदिक रीतियों के साथ त्रिशूल की प्राण प्रतिष्ठा की गई।
पूजा विधि में सम्मिलित प्रमुख अनुष्ठान:
1. गंगाजल और पंचगव्य से त्रिशूल का अभिषेक
2. वैदिक मंत्रों द्वारा पवित्र ध्वनि स्पंदन का निर्माण
3. त्रिशूल का सिंदूर, चंदन और फूलों से श्रृंगार
4. भक्तों द्वारा त्रिशूल पर अक्षत, बेलपत्र और जल अर्पण
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त्रिशूल स्थापना के अवसर पर श्रद्धालुओं की उपस्थिति
त्रिशूल स्थापना के पावन अवसर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे, जिनमें समाज के विभिन्न वर्गों के प्रतिष्ठित लोग शामिल रहे। इस धार्मिक आयोजन में उपस्थित प्रमुख व्यक्तित्वों में शामिल थे—
पंडित उपेंद्र पाण्डेय
गौतम पाण्डेय
गुरु पाण्डेय
सोमनाथ पाण्डेय
अंबेश्वरी पाण्डेय
सर्वदानंद पाण्डेय
समीर पाण्डेय
कृष्ण चंद पाण्डेय
डा. एहसान अहमद
एड. पंकज पाण्डेय
नवनीत पाण्डेय उर्फ शिट्टू
अवनीश पाण्डेय
श्वेतिमा माधव प्रिया बाल व्यास
बाल भक्त सौराष्ट्र
समाज के सभी वर्गों ने इस आयोजन में अपनी श्रद्धा और सहभागिता दर्ज कराई।
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धराधाम परिसर – धर्म और सौहार्द का अनूठा संगम
धराधाम के उद्देश्य और संकल्प
धराधाम का उद्देश्य धर्म, मानवता और वैश्विक सौहार्द को बढ़ावा देना है। संत डॉ. सौरभ के नेतृत्व में धराधाम अंतर-धार्मिक संवाद और समरसता का केंद्र बन चुका है। यहाँ सभी जाति, धर्म और संप्रदाय के लोग एक साथ मिलकर आध्यात्मिक उन्नति की ओर बढ़ते हैं।
भविष्य की योजनाएँ
1. भक्तों के लिए विशेष सत्संग और योग शिविरों का आयोजन
2. मंदिर परिसर में अन्नक्षेत्र (भंडारे) की स्थापना
3. शिक्षा और संस्कार केंद्र का निर्माण, जहाँ बच्चों और युवाओं को भारतीय संस्कृति एवं वेदों का ज्ञान दिया जाएगा
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निष्कर्ष: त्रिशूल – शक्ति, संतुलन और सौहार्द का प्रतीक
धराधाम परिसर में वर्षों पूर्व स्थापित त्रिशूल न केवल धार्मिक आस्था को मजबूत करने का कार्य करता है, बल्कि यह शक्ति, संतुलन और सौहार्द का भी प्रतीक है। बाबा गंगेश्वर नाथ मंदिर की यह त्रिशूल स्थापना भक्तों के लिए आस्था और शक्ति का स्रोत बनी हुई है।
यह त्रिशूल हमें यह संदेश देता है कि हमें अपने जीवन में संतुलन बनाए रखना चाहिए—ज्ञान, कर्म और विश्राम के बीच। यही शिव का संदेश है और यही त्रिशूल का सार है।
“हर हर महादेव! त्रिशूल की स्थापना से मिले अनंत आशीर्वाद!”