ये संवेदनशून्यता अब साहस का एहसास दिलाती है
ये संवेदनशून्यता अब साहस का एहसास दिलाती है,
आँखों को अश्रुओं की कैद से मुक्त कराती है।
कभी वो हृदय जो, आघातों से मूर्छित हुआ करता था,
शवदाह कर उस राख की किलेबंदी उठाती है।
कभी इक पल का अँधेरा भी, साँसों को डराता था,
अब बुझाकर दीयों को अस्त्तित्व, खुद की तलाश कराती है।
कभी आस का छीन जाना, स्तब्ध कर जाता था,
अब तो विरक्ति निराशाओं को बिठा उपहास कराती है।
कभी नवीनता का रंगरोधन, मुस्कुराहटों को लुभाता था,
अब पाषाण खंडहरों की जीर्णता ही अपनी कहलाती है।
कभी दर्पण का दरकना भी भय को जगाता था,
अब तो व्यक्तित्व के विखंडन को भी ज़िन्दगी आजमाती है।
कभी आलोचनाओं का तीक्षण शूल पगों को सताता था,
अब ये नकरात्मकता मेरी उड़ानों पर कटींली धार चढाती है,
कभी यात्रा का मध्यांतर अंत की प्रतीति था,
अब इस नवआरम्भ के उद्धघोष से रन कसमसाती है।
ये संवेदनशून्यता अब साहस का एहसास दिलाती है,
आँखों को अश्रुओं की कैद से मुक्त कराती है।