एक ही जिंदगी मिली थी उसको भी ठीक से जी नहीं पाये, लोगों के ह

एक ही जिंदगी मिली थी उसको भी ठीक से जी नहीं पाये, लोगों के हिसाब से चलते चलते हम अपने लिए ही जीना भूल गए, लोगो को खुश रखते रखते हम खुद को ही खुश रखना भूल गए, पर फिर भी लोग हमसे खफा ही रहे,
वक्त बिता तो समझ आया कि मुझसे जुड़ा हर शख्स बस अपनी खुशी चाहता था, लोग अपनी अपनी कह जाते, हमारे बारे में कोई सोचता ही नहीं था,
मैं अगर उदास हूं परेशान हूं तो वे मेरा मसला है, जरूरत पड़ती तो लोग पूछते बरना
मुझपर मेरी बातों पर मेरी परेशानियों पे पर कोई ध्यान ही नही देता था,
लोगों के बीच रहकर धीर धीरे मुझे अहसास हुआ कि लोगों को रिश्ते नही बस कठपुतली चाहिए था, जो उनके इशारों पे नाच सके, वो जितना चाहे उतना ही वो बोल सके, और जैसे वो चाहे वैसे ही वो रह सके,