“विरह गीत”

बहुतेरे विषयों पर यूँ तो,
चलता रहता लिखना l
प्रस्तुत है पर आज हमारी,
विरह व्यथा पर रचना ll
शब्दों का जँजाल चतुर्दिक,
इसमेँ नहीं उलझना।
अधरों की आभा ना कम हो,
मौन अप्रतिम गहना।।
लगा भले रहता जीवन मेँ,
मिलना और बिछड़ना।
किन्तु त्यागना, किसी तरह ना,
सजना और सँवरना।।
शूल चुभेंगे उर में, ऐसे,
देंगे लोग उलहना l
अश्रु, धरोहर पर प्रियतम की,
इन्हें सहेजे रहना ll
कितनी भी बाधाएं आएँ,
पर कदापि ना डिगना।
जल्द विरह हारेगा, निश्चित,
मिल जाएँगें सजना।।
“आशा” उर मेँ, भले जागती,
मन की मन मेँ रखना।
प्रीत बावरी, सुन न सखी री,
बात किसी से न कहना..!
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