ज़ख्मी हुए हैं कुछ इस क़दर,
ज़ख्मी हुए हैं कुछ इस क़दर,
ना दर्द का एहसाह हुआ, ना चोट का,
कमबख्त ये दिल ऐसा टूटा,
खुद तो बर्बाद हुआ ही ,
पूरे जिस्म को बर्बाद कर गया।
टूट के बिखर गए पर,
किसी को भनक तक ना लगने दिए।
सब कुछ ऐसा बर्बाद हुआ कि,
देख के भी कुछ कर ना सकते।
रूह तो तबाह हो गईं,
अब ये जिस्म का क्या करे।
जो ना अब तेरा होना चाहता,
और ना किसी को अपनाना चाहता।
तू कर गया बर्बाद इस क़दर की,
ना कुछ सोच सके न कुछ समझ सकते।
दर्द तो बहुत हुआ,
लेकिन अब तक किसी से बया तक नहीं कर सके।
दिल तो बहुत बड़ा था,
मगर तेरे सिवा अब तक कोई आया नहीं ।
-सुधा