कविता (विमल वर्मा)
///विमल वरा///
तेरा जीवन मधु सिंधु होगा,
मेरा जीवन विधु-शाला।
देख इसे ले रक्षित कर तू,
प्राण विभव की वरमाला।।
रश्मिरथी का चाप समंदर,
अरु उर जीवन का अवगुंठन।
नवजीवन की प्रेरित आभा,
हो प्राणों का उर्वित अर्चन ।।
शुचि सजल प्रेम स्नेह भरा,
क्या बाधायें हमें छुड़ा लेगी।
लेकर सारी मलय सृष्टि मधु,
द्युति भाल पर सुधा बरसेगी।।
वह प्रेम सुधा वह चिर प्रणय,
अंतर्निहित मन रवि की अनल।
विमल वरा की प्रेरित सरिता,
आत्म मिलन का ज्योति संबल।।
स्वरचित मौलिक रचना
प्रो. रवींद्र सोनवाने ‘रजकण’
बालाघाट (मध्य प्रदेश)