बेटा है विशेष्य या कोई विशेषण?
हम अपनी बेटी को कहते हैं ना !
लाडली तुम बेटी नहीं, मेरा बेटा हो।
अरे ! यह क्या बात हुई भला !
जैसे बेटा ना हो, वह कोई विशेषण हो?
बेटा कह कर बेटी को तुम्हें
मिल जाता होगा चैन,
किंतु तनिक ठहरो, मेरे बंधु।
क्या तुमने दिन को ना, कह दिया हो रैन?
यह विषय नहीं है तुलना का, अस्तित्व अमर है दोनों का,
फिर क्यों दी तुमने यह उपमा, खतरे में है दोनों की गरिमा ।।
बाल मन पर तुमने जो आघात डाला है,
पुरुषों की श्रेष्ठता का जो कटु आभास करवाया है।
इसका परिणाम क्या होगा,
तनिक भी तुमने सोचा है?
आत्महीनता के दलदल में तुमने उन्हें धकेला है,
बेटा बनकर जीने का, उन पर दबाव डाला है।
बेटा बेटी दोनों ही हैं, मां की बगिया के फूल।
तुम डालते जा रहे हो उसमें घातक विषैले शूल,
किंतु अब यह शूल तुम्हें, अमृत की वर्षा न देंगे।
संघर्ष छेड़ दिया तुमने, परिणाम भी घातक होंगे।
प्रतिद्वंदी बनकर दोनों अब हरपल ही टकराएंगे ।
विकास की अब क्या विसात अब सर्वनाश ही छाएंगे।
दोष भाग्य कहकर तुम, अपना बचाव तो कर लोगे,
बीज नफरत का बोकर, तमाशबीन बन जाओगे ।
क्यों सवालों के बीच रहे एक बेटी का व्यक्तित्व,
जबकि मिट नहीं सकता कभी उसका भी अस्तित्व।।
ओह! अब बस करो, समझो,
जागो, उठो और विचार करो,
अपनी संकीर्ण मानसिकता का त्याग करो
बेटी पर उपहास बंद करो, उसकी ताकत का मोल करो
अब करनी कथनी का मेल करो।
बेटी को बस तुम बेटी ही कहो,
समाज के यह हैं, मजबूत स्तंभ,
एक सा चमकेगा, इनका दंभ,
गर उठेगा इनपर कोई प्रश्न,
खेल न होगा फिर ये खत्म,
सम्मान न दिया ,समान अगर तो,
करीब आ जाएगा दुनिया का अंत।