हर मन प्यार
कुण्डलिया
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कटुता सारी भूलकर, छलके हर मन प्यार।
पुण्य धरा पर सावनी, बरसे ज्यों जलधार।
बरसे ज्यों जलधार, धुले सारी कड़वाहट।
जीवन में हर ओर, स्नेह के छलक उठे घट।
कहते वैद्य सुरेन्द्र, मिटा दें मन की लघुता।
रखना कभी न शेष, कहीं आपस में कटुता।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य