*श्री विजय कुमार अग्रवाल*
भाल हो
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
याद करने के लिए बस यारियां रह जाएंगी।
23/176.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
बदल कर टोपियां अपनी, कहीं भी पहुंच जाते हैं।
मैंने हर मुमकिन कोशिश, की उसे भुलाने की।
वक्त आने पर भ्रम टूट ही जाता है कि कितने अपने साथ है कितने न
मुझ को किसी एक विषय में मत बांधिए
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
उसके बदन को गुलाबों का शजर कह दिया,
काव्य की आत्मा और अलंकार +रमेशराज
_______ सुविचार ________
विनोद कृष्ण सक्सेना, पटवारी
रुपया दिया जायेगा,उसे खरीद लिया जायेगा
- कुछ ऐसा कर कमाल के तेरा हो जाऊ -
साधक परिवर्तन का मार्ग खोज लेते हैं, लेकिन एक क्रोधी स्वभाव
Quote...
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)