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5 Jan 2025 · 1 min read

ग़म-ए-फ़ुर्क़त चुरा न ले ज़िंदगी जवां बचपन की,

ग़म-ए-फ़ुर्क़त चुरा न ले ज़िंदगी जवां बचपन की,
‘उम्र-ए-गुज़श्ता फ़िर पास बुला रही है यूं धीरे-धीरे

🖊️©️ डॉ. शशांक शर्मा “रईस”

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