समस्या विकट नहीं है लेकिन
कोशिश है खुद से बेहतर बनने की
दे संगता नू प्यार सतगुरु दे संगता नू प्यार
रूबरू रहते हो , हरजाई नज़र आते हो तुम ,
अरे आज महफिलों का वो दौर कहाँ है
दो अपरिचित आत्माओं का मिलन
दोस्ती तो होती लाज़वाब है,
राहें खुद हमसे सवाल करती हैं,
अगर ढूँढू ख़ुशी तो दर्द का सामान मिलता है
रहे_ ना _रहे _हम सलामत रहे वो,
Kashtu Chand tu aur mai Sitara hota ,
ग़ज़ल- चाहे नज़रों से ही गिरा जाना
बन्दगी
Sarla Sarla Singh "Snigdha "
कविता कीर्तन के है समान -