Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
2 Jun 2024 · 4 min read

स्नेह

स्नेह

लक्ष्मण तीन दिन पश्चात नदी पार विवाह में राम का प्रतिनिधित्व करके लौटे तो उन्होंने जैसे ही राम के पाँव छुए , राम ने उन्हें गले से लगा लिया , राम की ऑंखें नम देखकर सीता ने कहा , “ तुम्हारे भैया को तुम्हारे बिना यह तीन दिन ऐसे लगे , जैसे तीन वर्ष हों। ”

लक्ष्मण की ऑंखें भी नम हो आई , “ सच कहूं भाभी , वहाँ इतने लोगों को इकट्ठा देखकर मुझे पहली बार लगा , हम लोग यहाँ जंगल में कितने अकेले हैं ।”

“ विवाह कैसा रहा ? “ राम ने पूछा ।

“ उनकी विवाह पद्धति वैदिक परंपराओं से प्रभावित नहीं थी , वह अपने जीवन को नियमों में बाँधने के पक्ष में नहीं हैं ।”

“ तो क्या वे हमसे अधिक सुखी हैं ? “ सीता ने पूछा ?

“ यह मैं कैसे कह सकता हूँ , हाँ उन्हें यह सुनकर बहुत आश्चर्य हुआ कि शक्तिवान होते हुए भी, पिता की आज्ञा मानकर भईया बनवास चले आए, वह एक ही जीवन में विश्वास करते हैं , और धनोपार्जन जीवन का लक्ष्य मानते हैं । “

“ और ?” राम ने कुछ पल की चुप्पी को तोड़ते हुए कहा ।

“ उनकी कलाओं में भी व्यक्ति मुख्य है , वे उसके भीतर की नकारात्मकता को स्वीकार करते हुए उसके अनुसार जीवन पद्धति को अपनाये हैं ।”

“ जबकि हम उस नकारात्मकता को अभ्यास द्वारा सकारात्मकता में बदलकर जीवन को अनंत समय के साथ जोड़ना चाहते हैं , उसके लिए हम ऐसा समाज चाहते हैं जिसमें व्यक्ति के हित और समाज के हित एक हो जाएँ। ” सीता ने कहा ।

“ जी भाभी। ”

सीता ने देखा राम की दृष्टि कहीं दूर अपने विचारों में डूबी है।

“ चलो तुम पहले भोजन कर लो , भैया से बातें बाद में कर लेना। ” सीता ने लक्ष्मण से कहा ।

रात का समय था , राम भोजनोपरांत बाहर टहल रहे थे , लक्ष्मण ने पास आकर कहा ।

“ कोई चिन्ता भईया ? “

“ चिन्ता किस बात की , बस नदी पार के लोगों के बारे में सोच रहा था, तुम जानते हो वे अ्पना सामान बेचने जंगल के इस तरफ़ भी आते हैं ।” राम ने कहा ।

“ हाँ , और उनका सामान अयोध्या से बहुत उच्चकोटी का है ।” लक्ष्मण ने जैसे वाक्य पूरा करते हुए कहा ।

“ जानता हूँ उनके भौतिक विलास की कोई सीमा नहीं ।” राम ने अपने ही विचारों में खोये हुए कहा ।

“ वे मनुष्य को मनुष्य नहीं रहना देना चाहते , वे अंदर बाहर सब जगह यंत्रीकरण कर देना चाहते हैं ।” लक्ष्मण ने कहा ।

“ हुँ ।” राम ने गहरी साँस छोड़ते हुए कहा ।

“ आप इस बारे में क्या सोचते हैं ? “ लक्ष्मण ने पूछा

“ में इतना जानता हूँ सुख सुविधाओं की अपनी सीमा है , धरती की मनुष्य को दे सकने की अपनी सीमा है , जितनी भी मशीनें मनुष्य के भीतर डाल दी जाएँ , और उसकी शक्ति को हज़ारों गुणा बड़ा दिया जाये , फिर भी जो सूक्ष्म है वह दूर ही रहेगा , परन्तु यदि व्यक्ति का हित और समाज का हित एक हो जाये , तो मनुष्य का उद्विग्न मन शांत हो जायगा , और आवश्यकता से अधिक लेना उसका स्वभाव नहीं होगा , उसका यही ठहराव उसे संतुलित बनाएगा , और वह हर पल स्वयं को इस ब्रह्माण्ड का भाग अनुभव कर पायेगा। ” राम ने लक्ष्मण को देखते हुए कहा ।

“ आपकी बात उचित है भैया ,पर वे गलत हैं , हम यह भी तो नहीं कह सकते। ”

इतने में सीता ने बाहर आते हुए कहा , “ दोनों भाई किस चर्चा में व्यस्त हैं , चाँद को देखो , वो भी ठहर गया है ऊपर। ” सीता ने हाथ से इशारा करते हुए कहा। ”

दोनों भाई हस दिए , और दोनों की दृष्टि यकायक चाँद पर रुक गई।

उस शान्ति को तोड़ते हुए राम ने कहा,

“ यह प्राकृतिक सौंदर्य , यह शांति , यह हमारा स्नेह , यह परिपूर्ण है , शेष सब विखंडित है , और खंडन में कभी सुख नहीं होता , होती है मात्र चाह और पाने की , जिससे जन्मती हैं विषमतायें, इसलिए लक्ष्मण , उचित अनुचित की एक ही कसौटी है , क्या यह हमें शांति और प्रेम की ओर ले जा रही हैं या नहीं ? इसलिए मेरा पिता की आज्ञा मानना उचित था , तुम्हारा पत्नी से दूर यहां इसे अपना कर्तव्य समझ चले आना उचित है , सीता का मुझसे स्नेह होना , न कि मेरी सुख सुविधाओं से , उचित है। और कोई आश्चर्य नहीं कि, इसीलिए हम यहां राजधानी से दूर , अपने जीवन को सार्थक कर पा रहे हैं। ”

“ जी भैया , आपसे बातें करके मेरे भीतर के सारे संदेह मिट जाते हैं , और मन स्वच्छ हो खिल उठता है ।”

“ अच्छा , “ राम ने हँसते हुए उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, “ और जानते हो , तुम्हारे बिना यह कुटिया कैसे प्राणहीन हो गई थी !”

सीता उन दोनों का स्नेह देख गहरे संतोष का अनुभव कर रही थी ।

—- शशि महाजन

Language: Hindi
112 Views

You may also like these posts

सिर्फ तुम
सिर्फ तुम
अंजनी कुमार शर्मा 'अंकित'
राख का ढेर।
राख का ढेर।
Taj Mohammad
चलते चलते थक गया, मन का एक फकीर।
चलते चलते थक गया, मन का एक फकीर।
Suryakant Dwivedi
सजल
सजल
seema sharma
नजदीकियां हैं
नजदीकियां हैं
surenderpal vaidya
दौरे-शुकूँ फिर से आज दिल जला गया
दौरे-शुकूँ फिर से आज दिल जला गया
देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत'
* अहंकार*
* अहंकार*
Vaishaligoel
बाल गोपाल
बाल गोपाल
Kavita Chouhan
पवन संदेश
पवन संदेश
मनोज कर्ण
,,,,,,,,,,?
,,,,,,,,,,?
शेखर सिंह
*योग-दिवस (बाल कविता)*
*योग-दिवस (बाल कविता)*
Ravi Prakash
You'll never truly understand
You'll never truly understand
पूर्वार्थ
अभिव्यक्ति
अभिव्यक्ति
लक्ष्मी सिंह
- में लेखक तुम मेरी लेखिका -
- में लेखक तुम मेरी लेखिका -
bharat gehlot
हकीकत से रूबरू हो चुके हैं, अब कोई ख़्वाब सजाना नहीं है।
हकीकत से रूबरू हो चुके हैं, अब कोई ख़्वाब सजाना नहीं है।
अनिल "आदर्श"
जितना आपके पास उपस्थित हैं
जितना आपके पास उपस्थित हैं
Aarti sirsat
नवगीत - बुधनी
नवगीत - बुधनी
Mahendra Narayan
ए खुदा - ए - महबूब ! इतनी तो इनायत कर दे ।
ए खुदा - ए - महबूब ! इतनी तो इनायत कर दे ।
ओनिका सेतिया 'अनु '
चाय दिवस
चाय दिवस
Shyam Vashishtha 'शाहिद'
क्षमावाचन
क्षमावाचन
Seema gupta,Alwar
सवैया छंदों के नाम व मापनी (सउदाहरण )
सवैया छंदों के नाम व मापनी (सउदाहरण )
Subhash Singhai
पूरा सड़क है वीरान
पूरा सड़क है वीरान
Aditya Prakash
4676.*पूर्णिका*
4676.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
विवाह
विवाह
Shashi Mahajan
*इश्क़ से इश्क़*
*इश्क़ से इश्क़*
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
सोचा था तुम तो-------------
सोचा था तुम तो-------------
gurudeenverma198
पहले देखें, सोचें,पढ़ें और मनन करें,
पहले देखें, सोचें,पढ़ें और मनन करें,
DrLakshman Jha Parimal
पानी जैसा बनो रे मानव
पानी जैसा बनो रे मानव
Neelam Sharma
टेढ़ी-मेढ़ी बातें
टेढ़ी-मेढ़ी बातें
Surya Barman
बेवफा आदमी,बेवफा जिंदगी
बेवफा आदमी,बेवफा जिंदगी
Surinder blackpen
Loading...