लो! दिसंबर का महीना आ खड़ा हुआ ,
नारियां
विनोद कृष्ण सक्सेना, पटवारी
ज़िंदगी भर की हिफ़ाज़त की क़सम खाते हुए
जम़ी पर कुछ फुहारें अब अमन की चाहिए।
Yaade tumhari satane lagi h
प्रेम के दरिया का पानी चिट्ठियाँ
अंतर
डॉ राजेंद्र सिंह स्वच्छंद
तुम वह दिल नहीं हो, जिससे हम प्यार करें
जन्मदिन मनाने की परंपरा दिखावे और फिजूलखर्ची !
मुक्तक
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
राम नाम हिय राख के, लायें मन विश्वास।
एक तरफे इश्क़ के आदि लोग,