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17 Nov 2024 · 1 min read

सजल

सजल-1222 1222, 1222 1222

विषय -कुपोषित बालिका,
रस-करुण रस-

नशे में बाप रहता है,गरीबी राज करती है,
निकाले क्षोभ वो अपना,सुता को मार पड़ती है।

मिली है यातना क्यों कर,यही बस सोचती है वो,
खड़ी हैं दूर बहनें भी, नयन से धार बहती है।

बड़ी हैरान हो सोचें, बचाएं जान कैसे अब,
किसे आवाज दे दें हम, सुनेगा कौन तकती है।

नकारा बाप हो जिसका, रहे वो बालिका रोती,
सहारा कौन बनता है, गरीबी साथ चलती है।

बदन से खून बहता है, दुखे हैं घाव भी सारे,
कभी बेहोश हो जाये, कभी वो दाँत कसती है।

हुआ तन भूख से बेकल, मिले ना पेट भर खाना,
मिली फाकाकशी उसको, इसी की पीर सहती है।

सहन अब और कितना हो, नहीं अब दर्द की ‘सीमा’,
उठा ले अब खुदा मुझको,यही दिन रात कहती है।

सीमा शर्मा ‘अंशु’

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