आत्मस्वरुप
ठाकुर प्रतापसिंह "राणाजी "
मैं ज़्यादा बोलती हूँ तुम भड़क जाते हो !
अब भी देश में ईमानदार हैं
. क्यूँ लोगों से सुनने की चाह में अपना वक़्त गवाएं बैठे हो !!
*महाराज श्री अग्रसेन को, सौ-सौ बार प्रणाम है 【गीत】*
एक पुरुष जब एक महिला को ही सब कुछ समझ लेता है या तो वह बेहद
लोग कहते ही दो दिन की है ,
तेरी निशानियां महफूज़ रखी है दिल के किसी कोने में,
जहरीले और चाटुकार ख़बर नवीस
शिव बन शिव को पूजिए, रखिए मन-संतोष।
*परिमल पंचपदी--- नवीन विधा*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
मकान जले तो बीमा ले सकते हैं,
दोहा एकादश. . . . जरा काल
रंगों के रंगमंच पर हमें अपना बनाना हैं।