Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
11 Nov 2024 · 4 min read

लावारिस

अजितेश अतिशीघ्रता में लग रहा था, दौड़ कर ट्रेन पकड़ किसी तरह डिब्बे में सवार हो गया। दरवाजे पर खड़ा होकर हाफ रहा था, या यूँ कहे कि अपनी थकान कम कर रहा था। चूँकि सीट रिज़र्व थी, इसलिए कोई परेशानी जैसी बात नही थी।
थोड़ा शांत होकर केबिन का दरवाजा खोलते हुए अपनी सीट की तलाश शुरू की। आरएसी में आरंक्षण होने से कोई खास दिक्कत नही हुई, आसानी से सात नंबर की सीट मिल गयी,वातानुकूलित होने से अब उसे और आराम मिलने लगा था। अपना बैग सीट के नीचे रख कर वह आराम से पैर फैलाकर बाहर के दृश्यों को देखने मे तल्लीन हो गया था। उसे सफर में हमेशा आरएसी की सीट अच्छी लगती थी। चूँकि सामने वाला आया नही था इसलिए पूरी सीट पर पैर फैलाने को मिल गया था, बड़ा सुकून महसूस कर रहा था।
तभी अचानक एक युवती अपनी सीट ढूंढते हुए वहाँ पहुँची, और आठ देखकर रुक गयी। ” भाई साहब प्लीज, ये मेरी सीट है ” कहते वह अपना बैग सीट पर रखने लगी।
“अरे सॉरी मैम ” कहते हुए उसने अपने पांव खींचते हुए पालथी मार ली। अचानक उसका ध्यान उस युवती के चेहरे पर गया, जो जानी पहचानी सी लग रही थी। युवती के आराम से बैठने के बाद वह युवती को देख कर एकबारगी घबरा गया पुनः संयत होकर हिचकिचाते हुए उसके मुहं से निकला ” अनु ”
” जी ” युवती भी उसे आश्चर्य से देखने लगी पुनः बोली
” अमितेश आप,”
अमितेश ने हाँ में सर हिलाया , थोड़ा घबरा कर सकुचाया भी।
” कैसी हो आप , और कहाँ जा रही हो ? ” सन्तोष जनक उत्तर मिलते ही अमितेश एक सांस में बोल गया।
” बस कानपुर जा रही थी, माँ को देखने, उनकी तबियत ठीक नही है। कल उनका फोन आया था।”
” अच्छा तो अभी आप कहाँ हो ?, मुझे लगा था कि मुझसे तलाक लेने के बाद अपनी माँ के घर चली गयी होगी ”
” कैसी जाती उन पर फिर बोझ ही न बनती, पिता ने तो अपने रिटायरमेंट बेनिफिट का सारा पैसा तो मेरी शादी में खर्च कर दिया था, तो अब
किसके सहारे वहां जाती ”
” तब………. ”
” इस उम्र में कोई सरकारी जॉब तो मिलने से रही , यही एक प्राइवेट स्कूल ज्वाइन कर लिया , काम चल जाता है ” कहते हुए युवती ने एक पत्रिका खोली और उसमे व्यस्त होने का अभिनय कराती प्रतीत हो रही थी।
अमितेश भी शांत अपने मोबाइल में व्यस्त होने का अभिनय कर रहा था। उसके सामने सात वर्ष पूर्व की घटना घूमने लगी थी , जब उसकी आय काम होने से लगभग नित्य ही घर में पैसे को लेकर अनु से उसका कचकच हुआ करता था। बात अंत में तलाक पर जाकर समाप्त हुई थी। अंतिम समय तक उसने इस रिश्ते को बचाने का प्रयास किया था। मगर होनी को कौन टाल सकता है। तलाक के तुरंत बाद उसे एक बड़ी कंपनी का ऑफर मिला और उसे उसने अच्छे पॅकेज पर ज्वाइन भी कर लिया। फिर उसी शहर में दोनों अपनी दुनिया में तल्लीन हो गये थे , आज ऐसे सात वर्ष बाद उनकी आपस में मुलाकात ऐसे होगी , संभवतः उन्होंने सोचा भी नहीं था।
अनु पत्रिका पढ़ने के साथ साथ कनखियों से अमितेश को भी देखती जा रही थी , लगभग यही स्थिति कमोवेश अमितेश की भी थी। तभी मौन को तोड़ते हुए अनु ने पहल की –
” तो अभी,,,,,,,,,,,,,,”
” मैने अब एक बड़ी कंपनी ज्वाइन कर लिया, अच्छे पॅकेज के साथ ” बीच में ही अमितेश बोल उठा।
” नहीं मेरा तात्पर्य जीवन में आगे बढ़ने से था , मतलब दूसरे विवाह से ”
अमितेश ने सोचा कि शायद नौकरी की बात कर रही थी , पर उसका भाव सुन वह थोड़ा लज्जित हुआ और उसके प्रश्न के जवाव में उसने नहीं में सर हिला दिया।
” क्यों ?, जब अच्छे पॅकेज में आ गये तो आगे बढ़ना था ” दिल पर शायद वर्षों से बड़ी बर्फ अब पिघलने लगी थी।
” कोई तुम्हारे जैसा मिले तब ना, मेरी तलाश तुम्ही से प्रारम्भ होकर तुम्ही पर समाप्त हो जाती है ”
” पस्तावा तो मुझे भी कम नहीं है , पर अब क्या हो सकता है ” उसके चेहरे पर निराशा के भाव स्पष्ट थे।
” क्यों अनु ? मै सब अतीत भूल कर अभी भी तुम्हारे संग आने को पुनः तैयार हूँ , मै आज तक तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा था। जैसे ही अच्छी जॉब मिली , मैंने बहुत प्रयास किया तुम्हारा पता लगाने का ,मगर लगा नहीं पाया। कुछ नए जॉब का प्रेशर, कि ज्यादा समय निकल नहीं पाया तुम्हारी तलाश में। आज ऐसे मिलोगी सोचा नहीं था। बस अब एक तुम्हारे ‘हाँ’ की आवश्यकता है। शायद ईश्वर की भी यही इच्छा रही हो , हमारे बनवास के दिन समाप्त हो चुके हो और यही सोचकर उसने हमको फिर मिलवाने का यह उपक्रम किया हो। ” एक ही साँस में वह सब बोल गया।
” पर,,,,,,,,,,,, कहते हुए अनु लगभग सुबुकने को थी तभी स्टेशन पर अनाउंसमेंट हुई , अनु बैग उठाकर निकलने लगी, तभी उसके सर से पल्लू सरक गया , अमितेश को उसकी मांग में सिन्दूर दिखा, शायद वह अब किसी और की हो चुकी थी और वह दिल थाम कर अपनी सीट पर बैठ गया , शून्य में निहारते निःशब्द ! उसे हाथ मे आयी जिंदगी फिर रेत सी सरकती प्रतीत हो रही थी।
किसी ने कहा ” भैया स्टेशन आ गया ” , वह तेजी से लगभग चिल्लाते हुए “अनु -अनु ” कहते हुए बाहर निकल ही रहा था कि ट्रैन चल दी, वह कूद पड़ा , ट्रैन हादसे का शिकार हो निष्प्राण हो गया। आरपीएफ के लोग आते है और थोड़ी देर मुआयना करने के उपरांत उसे लावारिस घोषित कर पोस्ट मार्टम में भेजने की तैयारी करने लगे। तब तक अनु इस घटने से अनजान काफी दूर निकल चुकी थी

44 Views
Books from Dr. Ramesh Kumar Nirmesh
View all

You may also like these posts

लाचारी
लाचारी
Sudhir srivastava
नौकरी (२)
नौकरी (२)
अभिषेक पाण्डेय 'अभि ’
किसी का खौफ नहीं, मन में..
किसी का खौफ नहीं, मन में..
अरशद रसूल बदायूंनी
छलावा बन गई दुल्हन की किसी की
छलावा बन गई दुल्हन की किसी की
दीपक झा रुद्रा
तिनको से बना घर
तिनको से बना घर
Uttirna Dhar
बाबा चतुर हैं बच बच जाते
बाबा चतुर हैं बच बच जाते
Dhirendra Singh
आ जाओ गणराज
आ जाओ गणराज
Sarla Sarla Singh "Snigdha "
मेरी एक सहेली है
मेरी एक सहेली है
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
जय मातु! ब्रह्मचारिणी,
जय मातु! ब्रह्मचारिणी,
Neelam Sharma
#अहसास से उपजा शेर।
#अहसास से उपजा शेर।
*प्रणय*
जीत जुनून से तय होती है।
जीत जुनून से तय होती है।
Rj Anand Prajapati
भीड़ है रंगमंच सजा है, ‌पर हम अकेले किरदार से है।
भीड़ है रंगमंच सजा है, ‌पर हम अकेले किरदार से है।
श्याम सांवरा
बहुत कुछ सीखना ,
बहुत कुछ सीखना ,
पं अंजू पांडेय अश्रु
3279.*पूर्णिका*
3279.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
हर प्रार्थना में
हर प्रार्थना में
लक्ष्मी सिंह
*सबसे अच्छी मॉं के हाथों, निर्मित रोटी-दाल है (हिंदी गजल)*
*सबसे अच्छी मॉं के हाथों, निर्मित रोटी-दाल है (हिंदी गजल)*
Ravi Prakash
तुमने सुनना ही कब हमें चाहा,
तुमने सुनना ही कब हमें चाहा,
Dr fauzia Naseem shad
विश्व की छवि प्यारी
विश्व की छवि प्यारी"
श्रीहर्ष आचार्य
- कातिल तेरी मुस्कान है -
- कातिल तेरी मुस्कान है -
bharat gehlot
तुम तो हो जाते हो नाराज
तुम तो हो जाते हो नाराज
gurudeenverma198
जैसे-तैसे
जैसे-तैसे
Dr. Bharati Varma Bourai
मैं पापा की परछाई हूं
मैं पापा की परछाई हूं
ज्योति
गृह त्याग
गृह त्याग
manorath maharaj
सोरठौ
सोरठौ
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
"कयामत किसे कहूँ?"
Dr. Kishan tandon kranti
रात नशीली कासनी, बहका-बहका चाँद।
रात नशीली कासनी, बहका-बहका चाँद।
डॉ.सीमा अग्रवाल
ना मै अंधी दौड़ में हूं, न प्रतियोगी प्रतिद्वंदी हूं।
ना मै अंधी दौड़ में हूं, न प्रतियोगी प्रतिद्वंदी हूं।
Sanjay ' शून्य'
अरमान गिर पड़े थे राहों में
अरमान गिर पड़े थे राहों में
सिद्धार्थ गोरखपुरी
* शब्दों की क्या औक़ात ? *
* शब्दों की क्या औक़ात ? *
भूरचन्द जयपाल
शुभ प्रभात मित्रो !
शुभ प्रभात मित्रो !
Mahesh Jain 'Jyoti'
Loading...