सांसों की इस सेज पर, सपनों की हर रात।
आएंगे वो तुम्हें नीचा दिखाने,
मुझे मुझसे हीं अब मांगती है, गुजरे लम्हों की रुसवाईयाँ।
दिल की बात आंखों से कहने में वक्त लगता है..
दो ग़ज़ जमीं अपने वास्ते तलाश रहा हूँ
हम प्यार तुमसे कर सकते नहीं
शायद मेरी क़िस्मत में ही लिक्खा था ठोकर खाना
मन क्या है मन के रहस्य: जानें इसके विभिन्न भाग। रविकेश झा
आज लिखने बैठ गया हूं, मैं अपने अतीत को।