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31 Oct 2024 · 1 min read

sp 104 मन की कलम

sp 104 मन की कलम
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मन की कलम भाव की स्याही सेअंतस के दिव्य पटल पर
जो स्मृतियां उकेर देती हैं या हालात जिसे लिखवा दें
जो जन-जन के मन को भातीवह ही है कविता कहलाती

कभी हर्ष उल्लास जगाती बन कर कभी उदासी आती
पीड़ाओं के मेघ गरजते और अश्रु बनकर बह जाती
जो जन जन के मन को भाती वह ही है कविता कहलाती

कभी सिंह बन करती गर्जन शिव शंकर का तांडव नर्तन
युद्ध भूमि में बन प्रलयंकर अरि मुंडों की भेंट चढ़ाती
जो जन-जन के मन को भाती.वह ही है कविता कहलाती

बनती कभी विरह की पीड़ाआंखों में बरसात पीर की
जिसे दबाए रखना मन मेंअपनी मजबूरी बन जाती
जो जन-जन के मन को भाती वह ही है कविता कहलाती

बेटे की अकाल मृत्यु पर मन विदीर्ण पिता का होता
ना सह पाता ना रह पाता आत्मा अकुला कर रह जाती
जो जन जन के मन को भाती वह ही है कविता कहलाती
@
डॉक्टर इंजीनियर
मनोज श्रीवास्तव
sp104

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