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19 Oct 2024 · 1 min read

दोहा त्रयी. . . .

दोहा त्रयी. . . .

चाँद निहारे चाँद को, कर अनुपम शृंगार ।
करे सुहागन ओट से, अब उसका दीदार ।।

काजल बिन्दी चूड़ियाँ, सब कहती वो बात ।
कैसे बहके रात भर, प्रीति जनित उत्पात ।।

खारा सागर नैन का, बोले मन की पीर ।
अभिव्यक्ति ने मौन की , तोड़ी हर प्राचीर ।।

सुशील सरना / 19-10-24

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