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10 Oct 2024 · 5 min read

#आदरांजलि-

#आदरांजलि-
■ उद्योगलोक का सूर्यावसान।
★ नहीं रहे महामानव “राष्ट्र-रत्न” रतन जी टाटा
★ विश्व-बंधु राष्ट्र की महानतम क्षति।
【प्रणय प्रभात】
बीती रात मैं अपार आनंदित था। कारण था दिल्ली से दुबई तक तिरंगे की लहर। एक तरफ टी/20 क्रिकेट विश्व-कप के मुक़ाबले में महिला टीम की अभूतपूर्व विजय। दूसरी तरफ श्रंखला पर पुरुष टीम का दमदार क़ब्ज़ा। एक भारतीय के नाते मेरी प्रसन्नता स्वाभाविक थी। मैंने एक रात में दोहरी महाविजय का ऐसा महासंयोग बनते भी शायद पहली बार ही देखा था।
मैच समाप्ति के बाद टीव्ही ऑफ़ कर के मैं श्योपुर की ऐतिहासिक रामलीला का मंचन ऑनलाइन देखने लगा। आनंद के इन्हीं पलों में अकस्मात एक आघात सा लगा। व्हाट्सअप पर आए बेटी के संदेश से पता चला कि “रतन जी टाटा” नहीं रहे। मेरे ही नहीं श्रीमती जी के लिए भी ख़बर स्तब्ध करने वाली थी। वजह थी देशभक्ति व मानवता की सेवा की दिशा में टाटा-परिवार का पीढ़ी-दर-पीढ़ी समर्पण। बिना किसी शोर-शराबे के राष्ट्र व जनहित में अपनी भूमिका निभाने वाले रतन टाटा जी से हमारा आत्मीय लगाव था। मुझे नियनित रूप से पढ़ने वालों को याद भी होगा कि मैं उन्हें देश के महामहिम पद पर आसीन होते देखना चाहता था। राष्ट्रपति पद के लिए नामों को लेकर जारी क़यास के दौर में मैंने एक जागरूक नागरिक की हैसियत से अपनी भावना को सोशल मीडिया के मंचों पर कई बार साझा भी किया था। उप-राष्ट्रपति पद के लिए विद्वान महामहिम राज्यपाल जनाब आरिफ़ मोहम्मद खान साहब के नाम के साथ। यह जानते हुए भी कि देश की धूर्त राजनीति विद्वता, योग्यता, विशिष्टता नहीं जातीय, क्षेत्रीय व लैंगिक आधार पर पद व अलंकरण के पात्रों का वरण करती है। सियासी नफ़ा-नुकसान के समीकरण हल करने के बाद। खोखले आदर्श व उदारवाद के नाम पर थोथी वाह-वाही के लिए।
बिना किसी लाग-लपेट के सच कहूँ तो मुझे अल्पसंख्यक समुदाय में सबसे अधिक प्रिय “पारसी समाज” है। जिसकी अमन-पसंदी, वतन-परस्ती, कार्य व ध्येय-निष्ठा किसी से छिपी हुई नहीं है। हर तरह के अपराध, उन्माद, षड्यंत्र व गोरख-धंधों से कोसों दूर अति-अल्प “पारसी बिरादरी” के तमाम पुरोधाओं ने हर क्षेत्र में अपने समाज व राष्ट्र का परचम फहराया है। इनमें अपने पूर्वज दोराब जी, जमशेद जी की तरह श्रद्धेय “रतन जी” का नाम अग्रगण्य है और युगों-युगों तक रहेगा।
आज मैं एक बड़े उद्योगपति नहीं, एक बहुत बड़े इंसान के प्रति अपनी भावनाएं प्रकट कर रहा हूँ। एक अनूठा किरदार, जो समृद्ध घराने का सदस्य होते हुए भी पांव पर खड़े होने का आग़ाज़ नौकरी से करता है। जो अपने स्वाभिमान से समझौता नहीं करता। जो विलास के विरुद्ध स्वाबलंबन को तरज़ीह देता है। जो बड़प्पन के बाद भी विनम्र रहता है। आलीशान महल के बजाय छोटे से फ्लेट में सादगी से रहना पसंद करता है। जिसके लिए राष्ट्र-धर्म सर्वोपरि रहा। जिसने मुनाफ़े के लिए राष्ट्र-निष्ठा को रहन नहीं रखा। आम आदमी के लिए सुलभ सहूलियत की राह खोली।
क्यों न कायल हुआ जाए उस शख़्सियत का, जिसने करोबार जगत के दर्प को दसियों बार चूर किया। बातों नहीं दूरगामी सोच, दृढ़ निश्चय व साहसिक निर्णयों से। क्यों न फ़रिश्ता समझा जाए उसे, जिसकी करुणा बेज़ुबान जीवों के प्रति रही। सड़क के जानवर अकारण तो नहीं भागते किसी के क़दमों की आहट पर। स्ट्रीट-डॉग्स के लिए अपने सुरक्षित आवास को खुला छोड़ना हर किसी के लिए आसान नहीं होता। कोई एक दूसरी मिसाल बताएं, जिसने अपने पालतू श्वान के बीमार होने पर शाही घराने का सम्मान लेने लंदन जाना ठुकराया हो। एक नहीं ऐसे सैकड़ों प्रसंग हैं, जो स्व. श्री टाटा के सम्मान में आंखें नम कर देते हैं।
पराधीन से लेकर स्वाधीन व आधुनिक भारत के आर्थिक व औद्योगिक विकास में “टाटा परिवार” की भूमिका व योगदान सर्वविदित है। जिसे प्रणाम कर के आने वाले से लेकर टाटा कर के जाने वाले तक बच्चा-बच्चा जानता है। आक्रांताओं से लेकर फिरंगियों तक की बेहिसाब लूट के शिकार भारत को “टाटा समूह” ने जो आधार दिया, बताने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। देश की औद्योगिक क्रांति से लेकर आर्थिक आत्मनिर्भरता तक “टाटा” के योगदान को विस्मृत करना कुछ नहीं हो सकता, सिवाय “कृतघ्नता” के। करोड़ों भारतीयों को रोज़गार सहित विभिन्न क्षेत्रों में मदद “टाटा” की वंश परम्परा रही। जिसे सतत प्रवाही रखने में रतन जी की भूमिका “भागीरथी” व “भामाशाही” रही। यह अलग बात है कि “सत्ता-माता” के “करण-अर्जुन” बनने का सौभाग्य आज़ादी के बाद उगने वाले “वट-वृक्षों” को मिला। क्यों मिला, इसका न मेरे पास जवाब है, न जवाब देने का वक़्त। मैं तो “टाटा” की यशोगाथा के प्रेरक प्रसंग पढ़ कर व सुन कर इस मुक़ाम तक आया हूँ, कि एक विशिष्ट व असाधारण व्यक्तित्व व कृतित्व के प्रति भावपूरित शब्द-सुमन अर्पित करने को बाध्य हो रहा हूँ। वो भी अंतर्मन की आवाज़ पर। अन्यथा, सच तो यह है मेरे पूरे कुटुंब में वैयक्तिक रूप से एक भी सदस्य नहीं है, जो “टाटा समूह” के किसी भी उपक्रम या प्रकल्प से प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से लाभान्वित या उपकृत हुआ या हो रहा हो।
जीवन-मूल्यों व मानवीय सिद्धांतों के अनुपालन में आजीवन सफल व कुशल रहे स्व. श्री रतन जी टाटा को व्यक्तिगत रूप से “राष्ट्र-रत्न” मानूं या “विश्व-रत्न” यह मेरा अपना अधिकार है। जिसके लिए मुझे न किसी महाग्रन्थ के प्रावधान की आवश्यकता है, न स्वयम्भू पुरोधाओं की अनुमति की। “चमत्कार को नमस्कार” स्वभाव में नहीं। ना ही उगते सूरज को सलाम ठोकने का कोई अभ्यास। स्व. श्री रतन जी टाटा मेरे लिए, मेरे अपने सीमित ज्ञान और विवेक के अनुसार एक सच्चे “महानायक” व “महामानव” थे, हैं और रहेंगे। उनकी दिव्यात्मा के प्रति कृतज्ञ हृदय से भावभीनी श्रद्धांजलि। परमपिता उनकी सेवा, संवेदना को रेखांकित कर दिवंगत आत्मा को अपनी परम् सत्ता में परम् पद प्रदान करे व उनकी कीर्ति को चिरजीवी बनाए। परिवार व समूह से जुड़े असंख्य लोगों सहित सर्वाधिक सम्वेदनाएँ रतन जी के प्रिय जीव के प्रति, जो अपनी वेदना को हमारी तरह न व्यक्त कर सकता है, न साझा। ईश्वर उस बेज़ुबान पर विशेष कृपावान हो। बस यही है आज की प्रार्थना। ऊँ शांति।।
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#आत्मकथ्य-
मेरे “समग्र सृजन संसार” के साक्षी सम्भवतः परिचित होंगे कि मैं “व्यक्ति-पूजक” न हो कर मूलतः “वृत्ति-उपसक” हूँ। ईश्वर के अलावा किसी की स्तुति मेरी सामर्थ्य में नहीं। बहुधा, धनकुबेरों के बजाय कुबेर-वाहन “नर” (सर्वहारा श्रमजीवी) पर लिखता हूँ। इसके बाद भी स्पष्ट कर दूं, कि मैं किसी को उसकी “हैसियत” से नहीं, “ख़ासियत” से आंकता हूँ। शेष-अशेष।।
-सम्पादक-
●न्यूज़&व्यूज़●
(मध्य-प्रदेश)

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