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25 Aug 2024 · 1 min read

उनके रुख़ पर शबाब क्या कहने

ग़ज़ल
उनके रुख़ पर शबाब क्या कहने
जैसे ताज़ा गुलाब क्या कहने

लब पे है जी, जनाब क्या कहने
उनका लहजा रबाब क्या कहने

खोले गेसू, हवा में जब उसने
आये घिर कर सहाब¹ क्या कहने

दिल का महिवाल डूब जाता है
उनकी आँखें चनाब क्या कहने

वो सरापा² है हुस्न का पैकर
ज्यों मुसव्विर³ का ख़्वाब क्या कहने

ख़ाली कोई सवाल लौटा नहीं
इतने हाज़िर जवाब क्या कहने

यूँ वो निकले ‘अनीस’ बन ठन कर
लग रहे हैं नवाब क्या कहने
– अनीस शाह ‘अनीस ‘
1.बादल 2.सिर से पैर तक 3.चित्रकार

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