"महाराणा प्रताप: वीर गाथा"
अंधविश्वास से परे प्रकृति की उपासना का एक ऐसा महापर्व जहां ज
उस जैसा मोती पूरे समन्दर में नही है
ख़ुद के प्रति कुछ कर्तव्य होने चाहिए
अंधेरा छंट जाए _ उजाला बंट जाए ।
बस्ती जलते हाथ में खंजर देखा है,
इक ग़ज़ल जैसा गुनगुनाते हैं
सच्चा आनंद
Vishnu Prasad 'panchotiya'
जीवन की दास्तां सुनाऊं मिठास के नाम में
सालों से तो मंज़र यही हर साल होता है
*राज दिल के वो हम से छिपाते रहे*
साहित्य में बढ़ता व्यवसायीकरण
सिर्फ वही इंसान शिक्षित है, जिसने सीखना और परिस्थितियों के अ
शबनम की बूंदों का यों मिहिका सा जम जाना,
सुंदर शरीर का, देखो ये क्या हाल है
जब मायके से जाती हैं परदेश बेटियाँ
सबका हो नया साल मुबारक
अंजनी कुमार शर्मा 'अंकित'