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12 Sep 2024 · 1 min read

मतलबी

जानकर भी वो अनजान से बने है ,
बेगाने ही सही हम खुद अपनी पहचान बने है ,

उनकी फ़ितरत का रुख़ हम जानते है ,
मरासिम को वो नफ़े के ज़र्फ़ से तौलते है ,

वक़्त बदलते ही वो रंग बदलते है
रसूख़ और दौलत की बिना पर इंसां को परखते हैं ,

हमदर्द बनकर वो भरोसा हासिल करते है ,
मतलब निकल गया तो बीच राह छोड़ चल देते हैं ।

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