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31 Aug 2024 · 1 min read

*मनः संवाद—-*

मनः संवाद—-
31/08/2024

मन दण्डक — नव प्रस्तारित मात्रिक (38 मात्रा)
यति– (14,13,11) पदांत– Sl

ऋतम्भरा चित्तवृत्ति हो, धारण करती सत्य जो, अति दुर्लभ सौभाग्य।
ज्ञानार्थी आगे बढ़ता, प्रेरणीय सानिध्य में, तब होता गुरु प्राग्य।।
शोधनीय गुरु की बातें, मनसा कर्मणि वाच्य सब, तब जागे वैराग्य।
अनुभव की भट्टी तपता, ज्ञान कसौटी पर खरा, बनता साधक वाग्य।।

ऋजुता जब स्वभाव बनता, टेढ़ापन सब दूर हो, मिटते सभी अभाव।
खुशहाली इर्दगिर्द हो, नाचे बिना बसंत के, होता विमल प्रभाव।।
तेजहीन होना ठीक नहीं, हो बलिष्ठ अंतःकरण, मिलते कई पड़ाव।
भँवरजाल है सतर्क बन, पथ कंटक से है भरा, अनगिन यहाँ घुमाव।।

— डॉ. रामनाथ साहू “ननकी”
संस्थापक, छंदाचार्य, (बिलासा छंद महालय, छत्तीसगढ़)

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