Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
29 Jan 2024 · 4 min read

सृष्टि की उत्पत्ति

एक समय महाविष्णु अकेले, गहरे शून्य में सोए थे
हलचल होती थी मन में, कुछ मंथन में वे खोए थे
आया विचार सृष्टि रचने का, गहन और गंभीर हुए
शांत चित्त हो अंतर्मन में, सृष्टि का खाका खींच लिए
सोचा घने अंधेरे में, मैं शांत शून्य रहता हूं
कुछ तो क्रीडा करूं आज, कुछ नया बना लेता हूं
उस मंथन से महाविष्णु के, अति भयंकर नाद हुआ
ओमकार के महाशब्द से, अदभुद एक प्रकाश हुआ
अद्वितीय इस प्रकाश पुंज से, ब्रह्मा विष्णु महेश हुए
महाविष्णु की स्तुति कर, तीनों देव प्रसन्न हुए
फिर बोले सर्वेश्वर उनसे, नई सृष्टि एक बनाओ
जाओ विभक्त हो जाओ, पिंड से अगणित पिंड बनाओ
अद्भुत सृष्टि करो ब्रह्मा जी, विष्णु पालन करेंगे
महेश होंगे जगत नियंता, और संहार करेंगे
महाविष्णु की इच्छा से, शिव ने जोर का नाद किया
खंड खंड हो गई वह काया, जिससे धरती सूरज चांद बना
बिखर रहे टुकड़े काया के, दसों दिशा में जाते थे
धरती आसमान और तारे, पल भर में बन जाते थे
धरती नवग्रह और तारागण, उस महा शून्य में आए
शिव के उस प्रचंड नाद से, आपस में सब टकराए
शंकर का घनघोर नाद जब, धीरे धीरे शांत हुआ
निकली जब ओंकार ध्वनि, शिवजी का मन शांत हुआ
किया संतुलन और शिव बोले, आपस में मत टकराओ
अपनी अपनी परिधि में, अपनी गति से हो जाओ
टकराने से उत्पन्न ऊष्मा, अद्भुत प्रकाश फैलाती थी
होती थी घनघोर गर्जना, दसों दिशा थर्राती थी
ऊष्मा और घनघोर गर्जना, काले मेघों को लाई
जलमग्न हुई सारी धरती, जो मेघों ने बरसाई
समय बहुत लग गया, धरा को ठंडी होने में
ऊंचे ऊंचे बने पहाड़, तब्दील हुई मैदानों में
सप्त खंड नवदीप बने, सप्तसागर लहराए
कई निकल पड़ी सरिताऐं, रेगिस्तान बनाए
कहीं पर ठंडी कहीं गरम, फिर चलने लगी हवाएं
सृष्टि कर्ता ने सबसे पहले, वनस्पति उपजाए
नाना नाम रूप के, नाम कोई न कह पाए
जलचर थलचर नभचर नाना, ब्रंम्हा ने जीव बनाए
किया धरा श्रंगार, जो ब्रह्म को बहुत लुभाए
हुई ब्रह्म की इच्छा, इस रमणीय धरा पर आने की
निज शरीर से प्रकट किया, अद्भुत जोड़ी मानस की
जाओ पंचमहाभूत के पुतले, जाओ धरा पर जाओ
करो नई सृष्टि धरती पर, प्रेम की दुनिया नई बसाओ
दे दिया है तुमको बुद्धि विवेक, तुम धरती पर रह पाओ
समन्वय के साथ धरा पर, सबको सुख पहुंचाओ
स्वार्थ को सीमित रखना, तुम हर जीव को सुख पहुंचाना
रखना ख्याल तुम जल जंगल का, धरती को दुख न पहुंचाना
मनु श्रध्दा प्रकटे ब्रह्मा से, सप्त ऋषि संग आए
धरती पर कैसे रहना है, ज्ञान संग में लाए
सत्य प्रेम और करुणा का, पाठ में तुम्हें पढ़ाता हूं
सर्वेश्वर की वाणी का,वेदों का सार बताता हूं
है सर्वेश्वर का यही मंत्र, मैं तुमको आज बताता हूं
घट घट में सर्वेश्वर बैठे, बात भूल ना जाना
मृत्युलोक में भेज रहा हूं, लौट तुम्हें है आना
तुम अपने आचरण कर्मों से, किसी को दुख न पहुंचाना
तुमको निर्मल भेज रहा हूं, तुम निर्मल वहां से आना
सब जीवों से अलग, मैंने तुम्हें बनाया है
हो मेरी देह से प्रकट, यह पंचभूत की काया है
न रखना तुम राग द़ेष, क्लेश नहीं पाओगे
करते-करते पर स्वारथ, पहचान मुझे तुम पाओगे
हे मनुष्य मनुष्यता अपना, पहला उद्देश्य बनाना
घोर अहं में पढ़कर बंदे, मुझको भूल न जाना
मैंने तुमको सुंदर धरती दी है, सुख शांति से रहने को
नाना अन्न फल फूल दिए हैं, मैंने तुमको खाने को
सरिताओं को निर्मल रखना, रखना ख्याल पहाड़ों का
नष्ट न करना जैव विविधता, ध्यान रहे इन बातों का
जब तेरा परिवार बड़े, भाईचारे से रहना
दुनिया है सारी कुटुंब, यह भाव सभी से रखना
यह आत्मा है परमात्मा की, हर समय तुम्हें निहारेगी
विरुद्ध आचरण करने पर , यह हरदम ही धिक्कारेगी
जब बुद्धि न काम करें, सुनना आत्मा की बात सदा
नीर क्षीर कर देगी यह, पापों से तुम्हें बचाएगी सदा
चार दिनों का मेला है, गिनती की यह सांसे हैं
एक दिन प्राण निकल जाएंगे, फिर चला चली की बेला है
पल पल का आनंद लूटना, सुख में भी और दुख में भी
नहीं निराशा आने देना, जीवन में एक पल भी
जीवन तो सुख दुख एक सपना, कर्म है अपना अपना
मनुज धर्म को नहीं भूलना, प्रमाद कभी न करना
अच्छा रखना उद्देश तू अपना, कर्म निरत नित रहना
कभी न तुम कटु वचन बोलना, सदा अहिंसा से रहना
काम क्रोध मद लोभ मोह, यह पंच विकार कहलाते हैं
धर्म अर्थ और काम मोक्ष, यही पुरुषार्थ कहलाते हैं
करके सामंजस्य चलोगे, सारा वैभव पाओगे
जीकर जीवन आनंद खुशी से, फिर महाप्राण में आओगे
असीम शक्ति के पुंज हो तुम, हे मनुज भूल ना जाना
करते रहना शुभ काम जगत में, तुम अपना नाम कमाना
गर्वित हो मानवता तुम पर, ऐंसा चलन चलाना
मानवता हो शर्मसार, कर्म नहीं ऐंसे करना
कदम फूंक के रखना अपने, न गिरना और गिराना
चमकदार इस दुनिया में, खुद को सदा बचाना
सदा रहे कर्तव्य बोध, खुद चलना और चलाना
ऋणी हो तुम सर्वेश्वर के, बंदे भूल न जाना
ऋणी हो गुरु मात पिता के, कर्म से कर्ज चुकाना
कर्ज बड़ा धरती माता का, तुम कैसे इसे चुकाओगे
सदा याद रखना तुम इनको, मां की गोद सा सुख पाओगे
मैंने तुमको जाने से पहले, बहुत हिदायत दे डाली
बैठे-बैठे देखूंगा तुमको, तुमने क्या छोड़ी और क्या पाली
बहुत कहा अब कुछ न कहूंगा, अब धरती पर जाओ
मात पिता और गुरु की वाणी, अपने हृदय बसाओ
जाओ पंचतत्व के पुतले, पूर्ण पुरुष हो जाओ

Language: Hindi
2 Likes · 1 Comment · 185 Views
Books from सुरेश कुमार चतुर्वेदी
View all

You may also like these posts

ये दुनिया है साहब यहां सब धन,दौलत,पैसा, पावर,पोजीशन देखते है
ये दुनिया है साहब यहां सब धन,दौलत,पैसा, पावर,पोजीशन देखते है
Ranjeet kumar patre
*** मेरा पहरेदार......!!! ***
*** मेरा पहरेदार......!!! ***
VEDANTA PATEL
खोदकर इक शहर देखो लाश जंगल की मिलेगी
खोदकर इक शहर देखो लाश जंगल की मिलेगी
Johnny Ahmed 'क़ैस'
प्यार और नौकरी दिनो एक जैसी होती हैं,
प्यार और नौकरी दिनो एक जैसी होती हैं,
Kajal Singh
मैं जिस तरह रहता हूं क्या वो भी रह लेगा
मैं जिस तरह रहता हूं क्या वो भी रह लेगा
Keshav kishor Kumar
मन को कर लो अपना हल्का ।
मन को कर लो अपना हल्का ।
Buddha Prakash
4. A Little Pep Talk
4. A Little Pep Talk
Ahtesham Ahmad
सपने
सपने
Divya kumari
प्रकृति में एक अदृश्य शक्ति कार्य कर रही है जो है तुम्हारी स
प्रकृति में एक अदृश्य शक्ति कार्य कर रही है जो है तुम्हारी स
Rj Anand Prajapati
Good Night
Good Night
*प्रणय*
गिद्ध करते हैं सिद्ध
गिद्ध करते हैं सिद्ध
Anil Kumar Mishra
चाहत मोहब्बत और प्रेम न शब्द समझे.....
चाहत मोहब्बत और प्रेम न शब्द समझे.....
Neeraj Agarwal
उम्मीद है दिल में
उम्मीद है दिल में
Surinder blackpen
" खास "
Dr. Kishan tandon kranti
चली आना
चली आना
Shekhar Chandra Mitra
पिता का यूं चले जाना,
पिता का यूं चले जाना,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
Lately, what weighs more to me is being understood. To be se
Lately, what weighs more to me is being understood. To be se
पूर्वार्थ
अपने-अपने काम का, पीट रहे सब ढोल।
अपने-अपने काम का, पीट रहे सब ढोल।
डॉ.सीमा अग्रवाल
अस्ताचलगामी सूर्य
अस्ताचलगामी सूर्य
Mohan Pandey
माना डगर कठिन है, चलना सतत मुसाफिर।
माना डगर कठिन है, चलना सतत मुसाफिर।
अनुराग दीक्षित
शिक्षक
शिक्षक
Nitesh Shah
23/01.छत्तीसगढ़ी पूर्णिका
23/01.छत्तीसगढ़ी पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
प्रसव
प्रसव
Deepesh Dwivedi
जागी जवानी
जागी जवानी
Pt. Brajesh Kumar Nayak / पं बृजेश कुमार नायक
मिल  गई मंजिल मुझे जो आप मुझको मिल गए
मिल गई मंजिल मुझे जो आप मुझको मिल गए
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
*समय*
*समय*
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
Divali tyohar
Divali tyohar
Mukesh Kumar Rishi Verma
यूँ ही
यूँ ही
हिमांशु Kulshrestha
ये क्या नज़ारा मैंने दिनभर देखा?
ये क्या नज़ारा मैंने दिनभर देखा?
Jyoti Roshni
एक दिन आना ही होगा🌹🙏
एक दिन आना ही होगा🌹🙏
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
Loading...