ज़िंदगी की कँटीली राहों पर....
नई दृष्टि
PRATIBHA ARYA (प्रतिभा आर्य )
अब आदमी के जाने कितने रंग हो गए।
कमबख्त़ तुम याद बहुत आती हो....!
singh kunwar sarvendra vikram
मेरे “शब्दों” को इतने ध्यान से मत पढ़ा करो दोस्तों, कुछ याद र
राह मुझको दिखाना, गर गलत कदम हो मेरा
विपत्ति में, विरोध में अडिग रहो, अटल रहो,
जैसे ये घर महकाया है वैसे वो आँगन महकाना
इश्क़ छूने की जरूरत नहीं।
कुछ यक्ष प्रश्न हैं मेरे..!!