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11 Aug 2024 · 1 min read

मेरे दर तक तूफां को जो आना था।

तेरे घर में मौसम सुहाना था, मेरे दर तक तूफां को जो आना था,
वहाँ ठंडी हवाओं का आशिकाना था, यहां तिनकों को भी बिखर जाना था।
गुनगुनाती थी बारिशें तेरी छत पर, मेरे टिन की छत का ना कोई ठिकाना था,
शाम रौशनी में नहा कर आयी वहाँ, मेरे तो हर दीपक को बुझ जाना था।
वहाँ एहसासों में ख़ुशबुओं का ताना-बाना था, यहां साँसों का एक सांस के लिए भी घुट जाना था,
तुम्हें आनेवाले कल के सपने को सजाना था, मुझे बीते कल की यादों को सहलाना था।
तेरी ख्वाहिशों में साथ देता ज़माना था, मुझे कोरे रंग की चुनर को अपनाना था,
तेरी खुशियों को होठों पर मुस्काना था, मुझे मुस्कुराहटों को आँखों से बहाना था।
जिस तुलसी को तेरे आँगन में पूजा जाना था, उसे लेकर मुझे मुक्तिधाम तक जाना था,
सिर पर तेरे आशीषों का खजाना था, मेरे सिर से उठा साया वो पुराना था।
तुझे झूठी सांत्वना का खेल रचाना था, मेरी आँखों को सच को देख जाना था,
तुझे धोखे के खंजर को चलाना था, मुझे अपनों की ढाल बन जाना था।
वक़्त का ये कैसा निर्मम फ़साना था, जिसे वक़्त को हीं बखूबी सुनाना था,
तुमने अपना मुझे कभी ना माना था, बस एक भ्रम था जिसे सत्य से टकराना था।

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