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4 Jun 2024 · 2 min read

“ सर्पराज ” सूबेदार छुछुंदर से नाराज “( व्यंगयात्मक अभिव्यक्ति )

डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”

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सर्पराज आजकल नाराज चल रहे थे ! वो नाराजगी थी सूबेदार छुछुंदर से ! विश्वास करके सर्पराज ने छुछुंदर को सूबे का नेतृत्व सौंपा था ! शायद वहाँ की हालात सुधर जाएगी ! केंद्र के नक्शे कदम पर सूबेदार छुछुंदर अपने सूबे को चलाएगा ! एक बार में दस- दस बच्चों को जन्म देने वाला छुछुंदर को सर्पराज ने कड़ी हिदायत दे रखी थी !” कुछ हो जाए बच्चे पैदा मत करना “ ! पर इसके विचित्र बदबूदार गंधों ने सम्पूर्ण सूबे को दूषित करने लगा ! अपने अनगिनत दांतों के प्रहारों से समस्त सूबे को कुतरने लगा ! स्थानीय लोगों ने सूबेदार छुछुंदर की शिकायत केंद्र के सर्पराज को करने लगे ! उसकी छोटी -छोटी आँखें अब केंद्र की गद्दी पर बैठने के सपने देख रहीं थीं ! इस बात की भनक केंद्र के राजा सर्पराज को लगी ! उसने आदेश दिया –
“ सूबेदार छुछुंदर को शीघ्र सूबे से बुलाया जाए और हमारे सामने पेश किया जाए !”
सूबेदार छुछुंदर को अनुमान लग गया कि हमारी फैलायी बदबू हमारे सूबे से केंद्र तक पहुँच गई ! वह झट सर्पराज के दरबार में उपस्थित हुआ ! सर्पराज के पास पहुँच कर सूबेदार छुछुंदर ने अपनी पुंछ हिलायी और अभिवादन और साष्टांग दंडवत किया ! सर्पराज ने पूछा _
” तुम्हारे सूबे में आखिर हो क्या रहा है सूबेदार ?”…तुम भूल गए ? मैंने ही तुम्हें यहाँ से सूबे में भेजा था ! स्थानीय कार्यकर्ता ,केन्द्रीय नेता और कुछ वाइल्ड कार्ड एंट्री दलबदलू नेता तुम्हारे बदबू से असहज महसूस कर रहे हैं ! “
सूबेदार छुछुंदर जानता था कि “हमें तो सर्पराज निगल नहीं सकता ! पर हमें शायद “ मार्ग दर्शक कोप भवन “ में बंदी बना के रख सकता हैं ! पर नाम मेरा भी सूबेदार छुछुंदर है ! सर्पराज के दिन अब ढल चुके ! मौका मिलते ही हम इन्हें ही कैद कर देंगे !” मन ही मन सूबेदार छुछुंदर ने सोचा ! सूबेदार छुछुंदर ने विनम्रता कहा , _
“ श्रीमान अभी चुनाव का समय है ! हमें अपनी एकता दिखानी है ! नहीं तो हमारी पकड़ ढीली हो जाएगी !”
पर सर्पराज ने तो कितने लोगों को अपने विषदंतों से आघात किया है ! कहीं सूबेदार छुछुंदर ही ना मुझे “ मार्ग दर्शक कोप भवन “ में डाल दे !”-मन ही मन में उसने सोचा !सूबेदार छुछुंदर की पेशी खत्म हुई ! उन्हें सूबे में फिर भेज दिया पर केंद्र के सर्पराज की नींदें उड़ गई ! “ सही में छुछुंदर को सर्पराज के लिए छोड़ना भी मुश्किल है और मारना भी मुश्किल है !”
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डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल “

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