जुल्म ढाते हैं बहुत वो ढाने वाले
जुल्म ढाते हैं बहुत वो जुल्म ढाने वाले
खुद भी रोते हैं हमको रुलाने वाले
क्या है भला क्या बुरा लोग जानते हैं
बुराई करते हैं वो भला जताने वाले
खुद भी रोते हैं…………………..
वे जानते हैं जख्म है कहां दर्द है कैसा
नमक छिड़कते हैं देखो जलाने वाले
खुद भी रोते हैं…………………..
वो अपनत्व की अवनी कहाँ फलती है
जड़ उखाड़ देते हैं अंकुर लगाने वाले
खुद भी रोते हैं…………………..
मुझे क्या खाक रस्ता बतलाएंगे वे सुनो
खुद ही बेमंजिल हैं राह दिखाने वाले
खुद भी रोते हैं…………………..
मैं किस से सहारे की उम्मीद रखता हूँ
खुद बैसाखी लिए हैं वो उठाने वाले
खुद भी रोते हैं…………………..
‘V9द’ अब तो खुली आँख बंद न कर
बहुत दूर खड़े हैं अपना बताने वाले
खुद भी रोते हैं………………….
स्वरचित
V9द चौहान