Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
2 Jun 2024 · 2 min read

2 जून की रोटी…….एक महत्व

शीर्षक – जून की रोटी
***************
हम सभी जानते हैं। मानवता के साथ साथ जून की रोटी का मतूआज की तारीख 2 जून की तारीख से
एक प्रचलित कहावत है 2 जून की रोटी इसे लेकर बात करें तो, ‘2 जून की रोटी’ आमतौर पर एक प्रचलित कहावत हैं। आज भी माता-पिता अपने बच्चों को अन्न का अनादर न करने के लिए इस कहावत का इस्तेमाल करते हैं। बच्चों को खाने को बर्बाद करने से रोकने के लिए कहा जाता है कि आजकल लोगों को दो जून की रोटी ही मिल जाए बड़ी बात होती है और कुछ लोग खाना बर्बाद कर रहे हैं। ज्यादातर उत्तर भारत में इस कहावत का इस्तेमाल किया जाता है। हमारे भारत देश में सबके नसीब में नहीं ‘दो जून की रोटी’
कृषि प्रधान देश होने के बावजूद देश में कई लोग ऐसे हैं जिनको दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं हो पाती है। हालांकि, इन गरीबों के लिए सरकार कई योजनाएं चला रही है और लाखों-करोड़ों रुपये खर्च कर रही है। कोरोनाकाल के बाद से केंद्र की मोदी सरकार गरीबों के लिए मुफ्त अनाज भी उपलब्ध करा रही है, जिससे 80 करोड़ से ज्यादा लोगों को फायदा हो रहा है।वास्तव में, “2 जून की रोटी” का तात्पर्य दिन में दो बार भोजन करने से है, जो प्रत्येक व्यक्ति की मूलभूत आवश्यकता है। कर्मचारियों, व्यवसाय मालिकों और गरीबों सहित जीवन के सभी क्षेत्रों के लोग अपने भोजन को सुरक्षित करने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं। जौ की रोटी गिदोन का प्रतिनिधित्व करती थी। जौ की रोटी गरीब आदमी की रोटी थी। यह इस तथ्य को दर्शाता है कि इज़राइल और गिदोन गरीब, तिरस्कृत और उत्पीड़ित थे। गिदोन स्वयं शक्तिशाली और महान नहीं था, बल्कि कमजोर और तुच्छ था। जौ हमें यहूदी धर्म में विविधता को अपनाने का महत्व सिखाता है, जो पहली बार हजारों साल पहले रूथ के समय में दर्ज किया गया था। यह रूथ और बोअज़ जैसे लोग और उनके वंशज हैं जो अक्सर एक पीढ़ी के महान नेता बनते हैं। मेरे लिए, जौ आस्था और आध्यात्मिकता का भी प्रतिनिधित्व करता है। परिचय (Parichay) जौ दुनिया भर में खेती किए जाने वाले सबसे पुराने पौधों में से एक है और यह शुरुआत के दिनों में जानवरों और मनुष्यों का मुख्य भोजन रहा है। जौ का वैज्ञानिक नाम होर्डियम वल्गारे एल. है। जून की रोटी’ का मतलब लोगों से ‘दो जून की रोटी’ होता है. इंसान की जो सबसे आम जरूरत है, वो खाना भी वही है. खाने के लिए इंसान क्या नहीं करता . नौकरी, बिजनेस करने वाले से लेकर गरीब तक, हर नौकरीपेशा की मूल आवश्यकता खाना ही है।
एक सच यही है कि हम सभी को पहले रोटी का महत्व बहुत अधिक था और रोटी के लिए हमें काम मिलता था।
*****************
नीरज अग्रवाल चंदौसी उ.प्र

Language: Hindi
151 Views

You may also like these posts

राम कृष्ण हरि
राम कृष्ण हरि
krishna waghmare , कवि,लेखक,पेंटर
*रामपुर से प्रकाशित हिंदी साप्ताहिक पत्र*
*रामपुर से प्रकाशित हिंदी साप्ताहिक पत्र*
Ravi Prakash
सोने की चिड़िया
सोने की चिड़िया
Bodhisatva kastooriya
नजरें खुद की, जो अक्स से अपने टकराती हैं।
नजरें खुद की, जो अक्स से अपने टकराती हैं।
Manisha Manjari
माँ.
माँ.
Heera S
पल पल रंग बदलती है दुनिया
पल पल रंग बदलती है दुनिया
Ranjeet kumar patre
"बागबान"
Dr. Kishan tandon kranti
चिड़िया ( World Sparrow Day )
चिड़िया ( World Sparrow Day )
Indu Nandal
सब कुछ
सब कुछ
MUSKAAN YADAV
बदले की चाह और इतिहास की आह बहुत ही खतरनाक होती है। यह दोनों
बदले की चाह और इतिहास की आह बहुत ही खतरनाक होती है। यह दोनों
मिथलेश सिंह"मिलिंद"
या खुदा तू ही बता, कुछ शख़्स क्यों पैदा किये।
या खुदा तू ही बता, कुछ शख़्स क्यों पैदा किये।
सत्य कुमार प्रेमी
उसके जैसा जमाने में कोई हो ही नहीं सकता।
उसके जैसा जमाने में कोई हो ही नहीं सकता।
pratibha Dwivedi urf muskan Sagar Madhya Pradesh
*उठो,उठाओ आगे को बढ़ाओ*
*उठो,उठाओ आगे को बढ़ाओ*
Krishna Manshi
Dr Arun Kumar shastri
Dr Arun Kumar shastri
DR ARUN KUMAR SHASTRI
मुर्दे भी मोहित हुए
मुर्दे भी मोहित हुए
Dr. Ramesh Kumar Nirmesh
बाल मज़दूरी
बाल मज़दूरी
Mandar Gangal
लहरों ने टूटी कश्ती को कमतर समझ लिया
लहरों ने टूटी कश्ती को कमतर समझ लिया
अंसार एटवी
सत री संगत
सत री संगत
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
दस्तक
दस्तक
Satish Srijan
जग के जीवनदाता के प्रति
जग के जीवनदाता के प्रति
महेश चन्द्र त्रिपाठी
गर्दिश में सितारा
गर्दिश में सितारा
Shekhar Chandra Mitra
चिम्पू जी की योगा क्लास - कहानी
चिम्पू जी की योगा क्लास - कहानी
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
नए ज़माने की जीवन शैली
नए ज़माने की जीवन शैली
Pushpa Tiwari
*सबकी अपनी दुनिया*
*सबकी अपनी दुनिया*
Dr. Vaishali Verma
चाकरी (मैथिली हाइकु)
चाकरी (मैथिली हाइकु)
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
ग़ज़ल
ग़ज़ल
आर.एस. 'प्रीतम'
वंदे मातरम
वंदे मातरम
Deepesh Dwivedi
“ख़्वाब देखे मैंने कई  सारे है
“ख़्वाब देखे मैंने कई सारे है
Neeraj kumar Soni
**तुझे ख़ुशी..मुझे गम **
**तुझे ख़ुशी..मुझे गम **
गायक - लेखक अजीत कुमार तलवार
दोहा पंचक. . . . . विविध
दोहा पंचक. . . . . विविध
sushil sarna
Loading...