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31 May 2024 · 1 min read

सीख (नील पदम् के दोहे)

पुस्तक इतना जानिये, सबसे बड़ी हैं मित्र,
इनकी संगत यों यश बढ़े, जैसे महके इत्र ।

चैन दिवस का उड़ गया, उड़ी रात की नींद,
ऐसे बालक से रखो, आगे बढ़ने की उम्मीद ।

सोया, खाया, करता रहा, अमूल्य समय बर्बाद,
अस बालक सूखे तरु, चाहे जो डालो फिर खाद।

पिता पुत्र को टोंकता, यह कीजो वह नाय,
अपनी गलती के सबक, बेटे को समझाय।

माता-पिता और बड़ों की बातें, समझो आशीर्वाद,
बीते समय के साथ में, बहुत आयेंगे याद ।

समय का मोती पास था, काहे दिया गँवाय,
काहे का रोना-पीटना, अब काहे पछताए ।

सूरज की एक रौशनी, देती अंकुर फोड़,
अपने मतलब की सीख को, लेवो सदा निचोड़ ।

(c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव “नील पदम्”

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