Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
26 May 2024 · 1 min read

सूखा पेड़

सूखा पेड़ हूँ मैं, बस यों ही खड़ा रहूँगा,
बूढ़ा हो गया हूँ,पर छाया तो देता रहूँगा,
तुम मुझे काटो चाहे कितने ही कष्ट दो,
तुम्हारी ज़रूरतें तो पूरी करता ही रहूँगा।

बारिश,गर्मी,सर्दी,आँधी, तूफान झेल लूँगा,
मगर तुम्हारा बाल भी बाँका न होने दूँगा,
तुम्हारे हर सुख दुख का भी साथी बनूँगा,
तेरा बचपन, जवानी, बुढ़ापा याद रखूँगा।

लोग आये मेरी छाया में बैठे और चले गये,
सबकी यादों को भी मैंने सहेज कर रखा है,
देखते देखते यों ही वर्ष बीतते ही चले गये,
मैं तो यहीं खड़ा हूँ,लोग आते जाते रहते हैं।

सबको मेरी छाया बहुत ही प्यारी लगती है,
सबको ही मेरी ज़रूरत तो महसूस होती है,
मगर मुझ पर किसी को दया नहीं आती है,
बेरहमी से मुझ पर आरी चला दी जाती है।

मैं बस सब के लिए एक गूँगा बेजान पेड़ हूँ,
मगर फिर भी लोगों की साँसों का कारण हूँ,
यों लालच में अन्धे हो कर मुझे काट देते हैं,
मगर अपनी ही जान की कीमत लगा लेते हैं।

सूखा पेड़ ही तो हूँ मैं, बस यों ही खड़ा रहूँगा,
बूढ़ा तो हो गया हूँ मैं, पर छाया तो देता रहूँगा,
तुम मुझे काटो चाहे कितने ही कष्ट क्यों न दो,
तुम्हारी ज़रूरतें तो हमेशा पूरी करता ही रहूँगा।

Loading...