Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
25 May 2024 · 2 min read

नतीजों को सलाम

दुनिया सिर्फ “नतीजों” को ही “सलाम” करती है, संघर्ष को नहीं” ये कहावत कारपोरेट जगत में बिल्कुल चरितार्थ होती है। आज की प्रतिस्पर्धा की दौड़ में कंपनी, अपने कर्मचारियों से इस कदर आशायें और उम्मीदें रखती है, जो युवा वर्ग के लिए तनाव पैदा कर रही है। मेरा अनुभव कहता है कि ज्यादातर कर्मचारी हमेशा अपनी क्षमता से अधिक इन कंपनी के लिए कार्य करते हैं और हमेशा अपनी कंपनी की शाख को मजबूत करने का जरूरी प्रयास भी करते हैं, पर तनाव की स्थिति तब पैदा होती है जब वो अपना तन, मन इन कंपनी की उत्पादकता बढाने के लिए झोंक देते हैं, फिर भी जरूरत से ज्यादा की होड़, प्रोफिट़ बढाने की लालसा, प्रतिस्पर्धा की अंधी दौड़ में पागल हुई ये कंपनियां आपके दिए हुये वो पल, मेहनत, लगन से लगे रहने और आपके सारे प्रयत्न को नकारा करते हुए सिर्फ परिणाम को तोलती है। क्योंकि इन कंपनिओं को अपने कर्मचारियों के तन, मन और स्वास्थ्य की परवाह नहीं उनको सिर्फ कम समय में अपने कर्मचारियों से सिर्फ चमत्कार वाले प्रभाव की उम्मीद रहती है। जो उनकी विक्री बढाने से जुडी़ होती है। दोस्तों अनुभव कहता है कि आप चाहे इन कंपनी के लिये अपना दिल भी निकाल कर रख दोगे, तब भी ये आपकी भावनाओं को कोई खास स्थान नहीं देंगे। ज्याद़तर अधिकारी सिर्फ आपको परिणाम के आधार पर ही आंकते है, पर मेरा मानना है कि आज के समय में भी 100% कोशिश, हिम्मत, मेहनत, जोश और लगन से जब आप अपने कार्य को अंजाम देते हैं तो बेशक सफलता आपको थोडी़ देर से ही मिले पर मिलती जरूर है। पर ये अधिकारी नहीं देखते, उनको तुरंत परिणाम की चाह रहती है, जो खतरनाक साबित होती है, इसके दुष्परिणाम उनको दिख ही जाते हैं, और इंसानियत की हार तब होती है, जब ऐसे मेहनती और ईमानदार कर्मचारी से चमत्कारी परिणाम ना आने से उसको निकालने की कोशिशें करते हैं। दोस्तों ये ही आज का कारपोरेट कल्चर हो गया है, यहां सिर्फ अधिकारियों को उनकी चापलूसी वाले हां मिलाने वाले लोग ही भाते हैं, ईमानदार, मेहनती और लगन के साथ काम करने वाले लोगों का कोई स्थान नहीं रहा है। नतीजे ही उनके लिए सर्वोपरि है।
सुनील माहेश्वरी

Language: Hindi
Tag: लेख
3 Likes · 68 Views

You may also like these posts

अर्थ में,अनर्थ में अंतर बहुत है
अर्थ में,अनर्थ में अंतर बहुत है
Shweta Soni
मुक्तक
मुक्तक
Santosh Soni
रिश्तों की परिभाषा
रिश्तों की परिभाषा
Sunil Maheshwari
खुश रहें, सकारात्मक रहें, जीवन की उन्नति के लिए रचनात्मक रहे
खुश रहें, सकारात्मक रहें, जीवन की उन्नति के लिए रचनात्मक रहे
PRADYUMNA AROTHIYA
Be the first one ...
Be the first one ...
Jhalak Yadav
4177.💐 *पूर्णिका* 💐
4177.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
उम्र के हर पड़ाव पर
उम्र के हर पड़ाव पर
Surinder blackpen
*भारतमाता-भक्त तुम, मोदी तुम्हें प्रणाम (कुंडलिया)*
*भारतमाता-भक्त तुम, मोदी तुम्हें प्रणाम (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
Dr arun kumar शास्त्री
Dr arun kumar शास्त्री
DR ARUN KUMAR SHASTRI
विषय-बिन सुने सामने से गुजरता है आदमी।
विषय-बिन सुने सामने से गुजरता है आदमी।
Priya princess panwar
अनंत शून्य
अनंत शून्य
Shekhar Deshmukh
भलाई
भलाई
इंजी. संजय श्रीवास्तव
सच्ची कविता
सच्ची कविता
Rambali Mishra
..
..
*प्रणय*
दोस्त को रोज रोज
दोस्त को रोज रोज "तुम" कहकर पुकारना
ruby kumari
जाना था
जाना था
Chitra Bisht
हाथों ने पैरों से पूछा
हाथों ने पैरों से पूछा
Shubham Pandey (S P)
बच्चे मन के सच्चे
बच्चे मन के सच्चे
Savitri Dhayal
"कहने को हैरत-अंगेज के अलावा कुछ नहीं है ll
पूर्वार्थ
"तजुर्बा"
Dr. Kishan tandon kranti
କେବଳ ଗୋଟିଏ
କେବଳ ଗୋଟିଏ
Otteri Selvakumar
कहते हैं तुम्हें ही जीने का सलीका नहीं है,
कहते हैं तुम्हें ही जीने का सलीका नहीं है,
manjula chauhan
सब वक्त का खेल है।
सब वक्त का खेल है।
Lokesh Sharma
हमने किस्मत से आंखें लड़ाई मगर
हमने किस्मत से आंखें लड़ाई मगर
VINOD CHAUHAN
चमकत चेहरा लजाई
चमकत चेहरा लजाई
राधेश्याम "रागी"
निंदा से घबराकर अपने लक्ष्य को कभी न छोड़े, क्योंकि लक्ष्य म
निंदा से घबराकर अपने लक्ष्य को कभी न छोड़े, क्योंकि लक्ष्य म
Ranjeet kumar patre
शीर्षक:-सुख तो बस हरजाई है।
शीर्षक:-सुख तो बस हरजाई है।
Pratibha Pandey
माता पिता भगवान
माता पिता भगवान
अनिल कुमार निश्छल
यह तो सब नसीब की बात है ..
यह तो सब नसीब की बात है ..
ओनिका सेतिया 'अनु '
वो पिता है साहब , वो आंसू पीके रोता है।
वो पिता है साहब , वो आंसू पीके रोता है।
Abhishek Soni
Loading...