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24 May 2024 · 1 min read

25. *पलभर में*

कब खुशियाँ होती है अपने बस में,
छूट ही जाती है बस पलभर में।
सांसें भी तो कब होती है अपने बस में,
सिमट जाती है बस पलभर में।
जिनके साथ रहना चाहते उम्र भर,
क्यूँ उन्हें खो देते हैं पलभर में।
बस इक सांसों की डोर टूटते ही
रुख्सत हो जाते इस जहां से पलभर में।
काश! सांसों का भी कर पाते व्यापार,
खरीद लेते कुछ सांसें….
चाहे सब कुछ देकर पलभर में।
कितनी मशक़्क़त से बनाते आशियाना ,
‘मधु’ छोड़ जाते है एक दिन पलभर में।

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